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________________ २८ शब्दार्थ ई-इदम् । कुलु-कुलम् । तुह तणउँ-तव सम्बन्धि ॥ इमु-इदम् । कुलु कुलम् । देक्खु-पश्य ॥ छाया (१) इदम् कुलम् तव सम्बन्धि ॥ (२) इदम् कुलम् पश्य ॥ अनुवाद (1) यह कुल तेरे सम्बन्धि ( = तेरा) (2) यह कुल देख । 362 वृत्ति अनुवाद उदा० शब्दार्थ ___एतदः स्त्री-पुं-क्लीबे 'एह' 'एहो' 'एहु' । 'एतद्' के स्रोलिंग, पुंल्लिंग और नपुंसकलिंग में 'एह', 'एहो', 'एहु' । अपभ्रंशे स्त्रियां, पुंसि, नपुंसके वर्तमानस्यैतदः स्थाने स्यमोः परयोर्यथासङ्ख्यम् ‘एह' 'एहो' 'एहु' इत्यादेशा भवन्ति । अपभ्रंश में स्त्रीलिंग, पुल्लिंग और नपुंसकलिंग में स्थित 'एतद्' के स्थान पर, 'सि' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) और 'अम्' (द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) लगने पर क्रमशः 'एह', 'एहो', 'एहु' ऐसे आदेश होते हैं । 'एह कुमारी, एहों नरु, एहु मणोरह-ठाणु' । एहउँ वढ चिंतताह पच्छइ होइ विहाणु ।। एह-एषा । कुमारी-कुमारी । एहॉ-एषः । नरु-नरः । एहु-एतद् । मणोरह-ठाणु-मनोरथ-स्थानम् । एहउ-एतद् । वढ (दे.)-(हे) मूर्ख । चितंताहँ-चिन्तमानानाम् । पच्छइ-पश्चात् । होइ-भवति । विहाणु= प्रभातम् ॥ (हे) मूर्ख, ‘एषा कुमारी, एषः (अहम् ) नरः, एतद् मनोरथ-रथानम्' एतद् चिन्तमानानाम् पश्चात् प्रमातम् भवति ।। (हे) मूर्ख, 'वह कुमारी और यह (मैं) पुरुष, यह (मेरे) मनोरथ का स्थान (= भाजन) है- यह ( = ऐसा) सोचते सोचते तो फिर सुबह होती है (हो जायेगी)। एइजस्-शसोः ॥ 'जस ' और 'शस् ' लगने पर 'एइ' । अपभ्रंशे एतदो जस-शसोः परयोः ‘एई' इत्यादेशो भवति ॥ अपभ्रंश में एतद् का 'जस' (= प्रथमा वहुवचन का प्रत्यय) और छाया अनुवाद 363 वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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