SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उदा० (२) तहाँ होतउ आगदो ! छाया तस्मात् भवान् ( = ततः) आगतः ॥ अनुवाद वहाँ से (वह) आया । उदा० (३) कहाँ होतउ आगदो ॥ छाया कस्मात् भवान् ( = कुतः) आगतः ।। अनुवाद कहाँ से (वह) आया ? 356 वृत्ति किमो डिहे वा ॥ 'किम् ' के विकल्प में 'डिहे' ( = इहे)। अपभ्रंशे किमोऽकारान्तात् परस्य डसेर 'डिहे' इत्यादेशो वा भवति ॥ अपभ्रंश में अकारान्त (सर्वनाम) 'किम्' के अकार के बाद आते 'सि' (पंचभी एकवचन के प्रत्यय) का डित् '० इहे" ऐसा आदेश विकल्प में होता है । उदा० जइ तहो तुट्टउ नेहडा मइँ सहुँ न-वि तिल-तार । तं किहे वंके हि लोअणे हि जोइज्जउँ सय-वार ॥ शब्दार्थ जइ-यदि । तहे-तस्याः । तुट्टउ-त्रुटितः । नेहडा-स्नेहः । मई-मया । सहुँ-सह । न-वि-न अपि । तिल-तार-(?) । तं-तद् । किहे - कस्मात् । वंके हि-वक्राभ्याम् । लोअणे हि-लोचनाभ्याम् । जोइज्जउँदृश्ये । सय-वार-शत-वारम् ॥ छाया यदि तस्याः स्नेहः त्रुटितः, यदि मया सह तिल-तारा (?) अपि न, (तर्हि) कस्मात् (अहम्) (तस्याः) वक्राभ्याम् लोचनाभ्याम् शत-वारम् दृश्ये? अनुवाद यदि उसका (मेरे प्रति) स्नेह (सचमुच) नष्ट हो गया हो (और यदि) मेरे साथ तिलतार (?) भी न हो, तो (फिर) क्यों सेंकडों बार (उसकी) तिरछी आँखों द्वारा (मैं) देखा जा रहा हुँ ? ( = आँखों से वह मेरी ओर देखती है ?) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy