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उदा० (२) तहाँ होतउ आगदो ! छाया तस्मात् भवान् ( = ततः) आगतः ॥ अनुवाद वहाँ से (वह) आया । उदा० (३) कहाँ होतउ आगदो ॥ छाया कस्मात् भवान् ( = कुतः) आगतः ।। अनुवाद कहाँ से (वह) आया ?
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वृत्ति
किमो डिहे वा ॥ 'किम् ' के विकल्प में 'डिहे' ( = इहे)। अपभ्रंशे किमोऽकारान्तात् परस्य डसेर 'डिहे' इत्यादेशो वा भवति ॥ अपभ्रंश में अकारान्त (सर्वनाम) 'किम्' के अकार के बाद आते 'सि' (पंचभी एकवचन के प्रत्यय) का डित् '० इहे" ऐसा आदेश विकल्प में होता है ।
उदा०
जइ तहो तुट्टउ नेहडा मइँ सहुँ न-वि तिल-तार । तं किहे वंके हि लोअणे हि जोइज्जउँ सय-वार ॥
शब्दार्थ
जइ-यदि । तहे-तस्याः । तुट्टउ-त्रुटितः । नेहडा-स्नेहः । मई-मया । सहुँ-सह । न-वि-न अपि । तिल-तार-(?) । तं-तद् । किहे - कस्मात् । वंके हि-वक्राभ्याम् । लोअणे हि-लोचनाभ्याम् । जोइज्जउँदृश्ये । सय-वार-शत-वारम् ॥
छाया
यदि तस्याः स्नेहः त्रुटितः, यदि मया सह तिल-तारा (?) अपि न, (तर्हि) कस्मात् (अहम्) (तस्याः) वक्राभ्याम् लोचनाभ्याम् शत-वारम् दृश्ये?
अनुवाद
यदि उसका (मेरे प्रति) स्नेह (सचमुच) नष्ट हो गया हो (और यदि) मेरे साथ तिलतार (?) भी न हो, तो (फिर) क्यों सेंकडों बार (उसकी) तिरछी आँखों द्वारा (मैं) देखा जा रहा हुँ ? ( = आँखों से वह मेरी ओर देखती है ?)
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