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वृत्ति
शब्दार्थ
उदा० (१) अन्नु जु तुच्छउँ तहे धणहे ॥ (२) भग्गउँ देक्खिवि निअय-बलु उम्मिल्लइ ससि - रेह जिव
छाया
अनुवाद
355
૧૩
कान्तस्यात ँ स्यमोः ।
अंत में '०क०' वाले के '० अ' का 'सि' और 'अम्' आने पर '०उँ' । अपभ्रंशे क्लीबे वर्तमानस्य ककारान्तस्य नाम्नो योऽकारस्तस्य स्यमो परयोः 'ॐ' इत्यादेशो भवति ॥
अपभ्रंश में नपुंसकलिंग में स्थित (और) जिसके अंत में (मूल में स्वार्थिक) ककार है ऐसी संज्ञा का जो (अंत्य ) अकार है, उस के बाद 'सि'
(
= प्रथमा एकवचन का 'स' प्रत्यय) और 'अम्' (= द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) आने पर ( उसका ) '०उँ' ऐसा आदेश होता है ।
वृत्ति
( देखिये 350 )
बल पसरिअउँ परस्सु । करि करवाल पिस्सु ||
,
भग्गउँ - भग्नकम् भग्नम् | देविखवि - दृष्ट्वा । निव्यय-बलु - निजक -बलम् । बलु-बलम् । पसरिअउँ - प्रसृतकम् । परस्सु - परस्य । उम्मिल्लइ - उन्मीलति । ससि - रेह - शशि - रेखा । जिव-यथा, इव । करि-करे । करवालुकरवालः । पिस्सु - प्रियस्य ॥
,
निजक - बलम् भग्नम् परस्य - बलम् (च) प्रसृतम् दृष्ट्वा ( मम ) प्रियस्य करे करवाल: शनि-रेखा इव उन्मीलति ॥
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अपना सैन्य तितर-बितर होता (और) शत्रु के सैन्य का प्रसार ( = आगे बढ़ना) देखकर (मेरे) प्रियतम के हाथ में तलवार शशिलेखा की भाँति उल्लसित हो रही है ।
सर्वादे ॥
सर्वादि के 'सि' का 'हाँ' |
अपभ्रंशे सर्वादेरकारान्तात् परस्य ङसेर 'हाँ' इत्यादेशो भवति || अपभ्रंश में 'अ'कारान्त सर्वनाम के बाद आते 'ङसि' (= पंचमी एकवचन के प्रत्यय ' ० अस ) का 'हाँ' ऐसा आदेश होता है । उदा० (१) जहाँ होंत आगदो ||
शब्दार्थ
जहाँ - यस्मात् । होतउ - भवान् । आगदो- आगतः ॥ यस्मात् भवान् ( = यतः ) आगतः ||
छाया
अनुवाद
जहाँ से ( वह) आया ।
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