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अनुवाद अपभ्रश में स्त्रीलिंग में स्थित संज्ञा के बाद आते 'जस' (= प्रथमा
बहुवचन का प्रत्यय) और 'शस' (द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) इन प्रत्येक का 'उ' 'ओ' ऐसे दो आदेश होते हैं । (इन) लोप के अपवाद हैं ।
(जैसे कि) 'जस' का :उदा. (१) अंगुलिउ जज्जरिआओं नहेण ।। (तुल० 333), शब्दार्थ अंगुलिउ-अङ्गल्यः । जज्जरिआओ-जर्नरिताः । नहेण-नखेन ।। छाया अङ्गल्यः नखेन जर्जरिताः ॥ अनुवाद अंगुलियाँ नाखुनों से जर्जरित हो गयीं । वृत्ति शस:
'शस' का उदा. (२) सुंदर-सव्वंगाओं विलासिणीउ पेच्छंताण || शब्दार्थ सुंदर-सव्वंगाओं-सुन्दर-सर्वाङ्गीः I विलासिणीउ-बिलासिनी: । पेच्छंताण
-प्रेक्षमाणानाम् ॥ छाया सुन्दर-सर्वाङ्गी: विलासिनी: प्रेक्षमाणानाम् ।। अनुवाद सर्वाङ्गसुन्दर विलासिनीओं को देखते... वृत्ति वचन-भेदान्न यथासङ्खयम् ।।
(सूत्र में आदेश का) वचन (मूल से) भिन्न होने के कारण (आदेश मूल के) अनुक्रम से (लेना) नहीं है ।
ट ए॥
'टा' का 'ए' । वृत्ति
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नः परस्योष्टायाः स्थाने 'ए' इत्यादेशो भवति । अपभ्रंश में स्त्रीलिंग में स्थित संज्ञा के बाद आते 'टा' ( = तृतीया एक
वचन के 'आ' प्रलय) के स्थान पर '०ए' ऐसा आदेश होता है । उदा० (१) निअ-मुह-करहिं वि मुद्ध किर अंधारइ पडिपेक्खइ ।
ससि-मंडल-चंदिमऍ पुणु काइँ न दूरे देक्खइ । शब्दार्थ निअ-मुह-करहि-निज-मुख-करैः। वि-अपि । मुद्ध-मुग्धा । किर
किल । अंधारइ-अन्धकारे । पडिपेक्खइ-प्रतिप्रेक्षते । ससि-मंडल-चंदिमएँ -शशि-मण्डल-चन्द्रिकया । पुणु-पुनः । काइ-किम् । न-न । दूर-दूरे । देक्खइ-पश्यति ॥
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