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________________ 346 आमन्त्र्ये जसो हो:॥ संबोधन में 'जस' का '-हो । वृत्ति अपभ्रंशे आमन्न्येऽथें वर्तमानान्नाम्नः परस्य जसो ‘-हो' इत्यादेशो भवति । लोपापवादः ॥ अपभ्रंश में संबोधन के अर्थ में स्थित संज्ञा के बाद आते 'जस' ( = संबोधन बहुवचन का प्रत्यय -अस् ') का '-हो" ऐसा आदेश होता है । (यह) लोप का अपवाद है । उदा० तरुणहो तरुणिहो मुणिउ मइँ 'करहु म अप्पहो घाउ' ॥ तरुणहों-(हे) तरुणाः । तरुणिहो-(हे) तरुण्यः । मुणिउ-ज्ञातम् । मइँ मया । करहु-कुरुत । म-मा । अप्पहो-आस्मनः । घाउ-घातम् ॥ कायो (हे) तरुणाः, (हे) तरुण्यः, मया ज्ञातम् , (यूयम् ) आत्मनः घातम् मा कुरुत (इति) ॥ अनवाद हे तरुणों, हे तरुणिओं, मेरा (ऐसा) मानना है (कि) तुम स्वयम् का घात न करो। 347 भिस्सुपोहि ॥ 'भिस' और 'सुप ' का -हि। वृत्ति अपभ्रंशे भिस्सुयोः स्थाने 'हि' इत्यादेशो भवति ॥ अनुवाद अपभ्रंश में 'भिस,' ( = तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) और 'सुप' (सप्तमी बहुवचन का ‘-सु' प्रत्यय) के स्थान पर -हिं' ऐसा आदेश होता है। उदा० (१) गणहि न संपय, कित्ति पर ।। (देखिये 335) (१) गुणाहन (२) भाईरहि जिव भारहि मग्गहि तिहि वि पयट्टइ ॥ शब्दार्थ भाईरहि-भागीरथी । जिव-यथा, इव । भारहि-भारती। मग्गहि-मार्गेषु । तिहि-त्रिषु । वि-अपि । पयट्टइ-प्रवर्तते ॥ छाया भागीरथी इव भारती त्रिषु मार्गेषु प्रवर्तते ।। अनुवाद भागीरथी की भांति भारती ( = वाणी) तीनों मार्गों पर प्रवर्तती हैं । 348 स्त्रियां जस-शसोरुदोत् ॥ स्त्रीलिंग में 'जस्' और 'शस' का '-उ' और '-ओ' । वृत्ति : अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानान्नाम्नः परस्य जसः शसश्च प्रत्येकमदोतावादेशो भवतः । लोपापवादौ । 'जसः' । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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