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छाया
अन
भिस्येद् वा ॥ 'भिस' लगने पर विकल्प में 'ए' । अपभ्रंशेऽकारस्य भिसि परे एकारो वा भवति । अपभ्रंश में (संज्ञा के अंत्य) 'अ' कार का, पिछे 'भिस्' (तृतीया बहुवचन
का प्रत्यय) लगने पर, विकल्प में 'ए' कार होता है । उदा० गुणहिँ न संपय, कित्ति पर फल लिहिआ भुजंति ।
केसरि न लहइ बोड्डिअ वि गय लक्खे हिँ घेप्पंति । शब्दार्थ गुणहिँ -गुणैः । न-न । संपय-सम्पत् । कित्ति-कीर्तिः । पर-परम् ,
केवलम् । फल-फलानि । लिहिआ-लिखितानि । भुजंति-भुजन्ति । केसरि -केसरी । न-न । लहइ-लभते । बोड्डिअ(दे.)-काकिणीम् । वि-अपि । गय-गजाः । लक्खेहि-लक्षः। घेप्पंति(दे.)-गृह्यन्ते । गुणैः सम्पत् न, केवलम् कीर्तिः (लभ्यते)। फलानि (तु) जनाः लिखितानि भुञ्जन्ति । केसरी काकिणीम् अपि न लभते, गजाः (तु) लक्षैः गृह्यन्ते ॥ गुणों के द्वारा संपत्ति नहीं, केवल कीर्ति (प्राप्त होती है) । (संपत्ति आदि जैसे) फल (तो लोग भाग्य में) लिखें (हों तो) पाते हैं । (जैसे कि) सिंह की 'कौड़ी' भी नहीं मिलती ( = सिंह की कौड़ी भी नहीं उपजती),
जबकि) हाथी लाखों से लिये जाते हैं । 336
इसेहे-हू ॥ 'सि' का 'हे' और '-हु' । अस्येति पञ्चम्यन्तं विपरिणम्यते । अपभ्रंशेऽकारात् परस्य इसे'हे' 'हु' इत्यादेशौ भवतः ॥ यानि कि 'अ'कार के बाद पंचमी के प्रत्यय के परिवर्तन का अब प्रतिपादन किया जायेगा । अपभ्रंश में (संज्ञा के अत्य) 'अ'कार के बाद आते 'सि' (पंचमी एकवचन के 'अस' प्रत्यय) का 'हे' और '-हु'
ऐसे आदेश होते हैं । उदा० (१) वच्छहे गृण्हइ फलइँ जणु कडु पल्लव वज्जेइ ।
तो-वि महमु सुअणु जिव ते उच्छंगि धरेइ ॥
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