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331
वृत्ति
उदा०
शब्दार्थ
छाया
अनुवाद
332
वृत्ति
स्मरस्योत् ॥
'सि' और 'अम्' लगने पर 'अ' का 'उ' ।
४
अपभ्रंश में 'सि' ( = प्रथमा एकवचन का 'स' प्रत्यय) और 'अम्' ( = द्वितीया एकवचन का 'म्' प्रत्यय) लगने पर ( नाम के अंत्य स्वर के रूप में रहे हुए ) 'अ'कार का 'उ'कार होता है ।
दहमुहु भुवण - भयंकरु,
तोसिअ - संकरु
मुहु छम्मुहु झावि, दहमुहु- दशमुखः । तोषित-शङ्करः । निग्गड - निर्गतः । आरूढः । चउमुहु - चतुर्मुखम् । छम्मुहु - षण्मुखम् | झाइवि - ध्यात्वा । एकहि - एकस्मिन्, एकत्र । लाइव -लगित्वा, कृत्वा । नावइ [ ज्ञायते ] -इव, यथा । दइवें - देवेन । घडिअउ - घटितः, निर्मितः ॥
भुवण- भयकरु- भुवन - भयङ्करः रहवारि - रथवरे
।
चडिअउ (दे.)
तोसिअ - संकरु, निभाउ रहवरि चडिभउ ।
एकहिँ लाइवि, नावइ दइवें
घडिअउ |
भुवन-भयङ्करः दशमुखः तोषित - शङ्करः रथवरे आरूढः निर्गतः । ( दृश्यते) यथा देवेन चतुर्मुखम् षण्मुखम् ध्याखा एकत्र कृत्वा (सः) निर्मितः ।
(a) भुवन के लिए भयप्रेरक दशमुख (= रावण) जिसने शंकर को तुष्ट किया है ऐसा ( = तुष्ट करके), उत्तम रथ पर आरुढ हुआ और ( = आरुढ हो कर) निकला – मानों चतुर्मुख ( = ब्रह्मा और ) षण्मुख ( = कार्त्तिकेय) का ध्यान कर के, (उन्हें) एकत्र कर के ( = एक साथ जोड़कर ) ( उसे) विधाताने गढ़ा हो ( = मानों गढ़ा न हों !) ।
सौ पुंस्योद्वा ॥
'सि' लगने पर पुंल्लिंग में विकल्प में 'ओ' । अपभ्रंशे पुंल्लिङ्गे वर्तमानस्य नाम्नोऽकारस्य सौ परे अपभ्रंश में पुल्लिंग में रही संज्ञा के अंत्य (प्रथमा एकवचन का 'स' प्रत्यय) लगने पर विकल्प में
उदा० (१) अगलिअ - नेह - निवट्टा
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।
जोअण- लक्खु विजाउ ।
वरिस-सएण वि जो मिलइ सहि, सोक्खहँ सो ठाउ ||
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ओकारो वा भवति ।
'अ' कार का, 'सि' 'ओ' कार होता है ।
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