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(lii )
'अम्हासु ठिअं' (381) और 'तुम्हासु ठिअं' (374) — इसमें 'ठियं' परसर्ग के रूप में है या 'स्थित' के अर्थ में, यह बिना संदर्भ के निश्चित नहीं हो सकता ।
'के लिये' के अर्थ में : केहि (सं. कृते, प्रा. कए, कएहिं), तेहि, रेसि, रेसिं (* रेस (?) का तृ. एक व.) और 'तणेण' (तन तण का तृ. एक व.) : षष्ठी के योग से । देखिये सूत्र 425.
'संबंधी' के अर्थ में : केरउ ( नपुं. केरउँ, स्त्री. केरी, सं. कार्य (?)) और 'तणड' (न. तजउँ, स्त्री. तणी; सं. तन (?) : षष्ठी के योग से । देखिये सूत्र 422 (20, 21 ) तथा 361 ( 1 ) 373 (2) 379 ( 4 ) । आधुनिक गुजराती काव्यभाषा में 'केरु", 'तणु' जीवंत है ।
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