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________________ (xlix) 1/2. एकवचन : 'अग्गउँ' और उसी प्रकार निम्नलिखित अंगों में से अप्पणय, उण्हय, एक्कमेक्कय, एहय, किअय, कुडुबय, छंदय, तणय, तुच्छय, तेवड्डय, थिरत्तणय, दिव्य, पसरिभय, बोल्लिभय, भग्गय, वल्लहय, विदत्तय, वुत्तय, हिअय, हिअडय । ___'वारिआ', 'जग्गेवा', 'सोओवा' पुंल्लिंग अनुसार है । 'संवलिय' प्राकृत 1/2. बहुवचन : 'कमल'' और उसी प्रकार निम्नलिखित अगों पर से : अलि उल, कुंभ, खंड, डंबर, निच्चिंत, पन्न, फल, मणोरह, लोअण, सर; 'फलाइँ' और उसी प्रकार निम्नलिखित अंगों पर से : खल, °गंड, रयण, वड्ड, वलण, विगुत्त, सय, हरिण । 'फल', 'नयण' आदि तथा 'लिहिआ' 'ड्डा' आदि पुल्लिंग की भाँति । इकारान्त उकारान्त पुंल्लिंग नाम 1/2.1. और 2. अप्रत्ययः सामि, केसरि, मुणि, कडु । 3.1. 'एँ' प्रत्यय : अग्गिएँ; 'ण' प्रत्यय : अग्गिए; अनुस्वार : 'अग्गि" 'सतें' (441.2) में प्रत्यय से लगने से पहले अंग का अंत्य स्वर लुप्त हुआ है। 3.2. 'हि प्रत्यय : बिहि । 4.1. 'हे' प्रत्यय : गिरिहे, तरुहे । 4.2. 'हुँ' प्रत्यय : सामिहुँ, तरुहुँ । 4/6.2. 'हुँ' प्रत्यय : तरुहुँ, सउणिहुँ । 7.1. 'हि' प्रत्यय : तिहि ; 'हुँ' प्रत्यय : दुहुँ । स्त्रीलिंग 1.2.1. अप्रत्यय : धण, रेह, मुद्ध, सिल, भल्लि, कित्ति, पइट्ठ, दिण्णी, वंकी । 1.2.2. अप्रत्यय : उदाहृत पद्यों में आता नहीं है, अन्यत्र मिलता है । 'उ' (या 'ओ') प्रत्यय : बज्जरिआउ, जज्जरिआओ, अंगुलिउ, घुग्घिउ,, सल्लइउ, विलासिणीओ, 'भजिजउ' में पूर्ववर्ती 'अ' लुप्त हुआ है । 3.1. 'ए' प्रत्यय : चंदिमएँ, नाइट्ठिएँ, निद्दऍ, कंतिएँ । 3.2, 'हि' प्रन्यय : दितिहि , सरिहि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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