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(xlviii)
5.1. 'हे' प्रत्यय : 'वच्छहे; 'हु' प्रत्यय : ‘वच्छहु', 'जलहु ।
5.2. 'हुँ' प्रत्यय : मुहहूँ, सिंगहुँ । 4.6./1. 'हो' प्रत्यय : अप्पहो, आयहो, कलेवरहो, तहो, दुल्लहहो.
लोअहो, सामिअहो, सेसहो । 'स्सु' प्रत्यय : कंतुस्सु ('कंत' पर से) और उसी प्रकार खंध, जग, जय, तत्त, पर, पिअ, सुअण-इन अंगों पर से ।
अप्रत्यय : पिअ (१) (332.2). 4.6.2. 'हँ' प्रत्यय : तणहँ ('तण' पर से); और उसी प्रकार से अन्न, चत्तंकुस, __ थण, मत्त, मयगल, माणुस, लोअण, समत्त, सोकूख इन अंगों पर से । 'आह' प्रत्यय : चिंतताहँ, नवंताहँ, निवट्टाहँ, मुक्काह, सउणाहँ ।
अप्रत्यय : गय (?) (345) 7.1. 'इ' प्रत्यय : उच्छंगि, करि, खभि, जुगि, तलि, निवहि, पत्थरि,
°पंकइ, °यडि, रहवरि, वणि, विओइ, विच्चि, हिअ; अंधारइ, कसवट्टइ, कुडीरह, तेहइ, दिइ, पणट्ठइ, निवडिअइ, रणडइ । 'ए' ('ए') प्रत्यय : अग्पिएँ, तले, त्थले, पिए, विहवे: दिठे (396)। दूरे (349.1), भुवणे (441.2), मज्झे (406.3); 'हि' प्रत्यय : °घरहि (422.15), देसहि (381.1), अन्नहि , एक्कहि, कवणहि , कहि,
जहि, तहि । 7.2. 'एहि' ('इहि', 'ऍहि) प्रत्यय । मग्गेहि , डुंगरेहि, अंगहि ,
गवक्खेहि । 8.1. 'अ' प्रत्यय : खल, मेह, पिअ, भमर, सारस ।
__ 'आ' प्रत्यय : ढोल्ला, पहिआ, मित्तडा, हिअडा, हिआ । 8.2. 'हो' प्रत्यय : तरुणहो, लोअहो ।
अकारान्त नपुंसकलिंग प्रथमा-द्वितीया के सिवा पुंल्लिंग से अलग प्रत्यय नहीं है । प्र. द्वि. एक व. में भी जहाँ सादा अंग है वहाँ जो पुल्लिंग में है वही प्रत्यय है। परंतु स्वार्थिक 'अ' प्रत्ययवाला अंग हों तव विकल्प में 'उँ' प्रत्यय लगा है । बहुवचन में भी पुंल्लिंग की भाँति बनते रूप के अलावा 'ई' प्रत्ययवाले रूप भी है । 'ई' के पूर्ववर्ती 'अ के विकल्प में 'आ' होता है ।
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