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४. संज्ञा का रूपतंत्र
प्रथम और द्वितीय पुरुष सर्वनामों को छोड़कर अन्य सर्वनामों के रूपाख्यान भी किसी अपवाद से ही संज्ञा के रूपाख्यान जैसे ही है । इसलिये संज्ञा, विशेषण और सर्वनाम सब के रूपाख्यान का इसी विभाग में निरूपण किया है।
अकारान्त पुंल्लिंग 1.2.1. 'उ' प्रत्यय : यहरु (अहर--), संकरु (संकर-), निग्गउ (निग्गय-); घडिअउ
(घडिअय-); इसो प्रकार माण, विहाण, लक्ख, मिलिअ, पच, कमल, तण, सायर, जुत्तय, जय, सन्न, चूर, घाय, कंत आदि पर से । 'आ' प्रत्यय : अम्हारा, कंचुआ, गरुआ; झुपडा, ढोल्ला, दड्दा, महारा, मारिमा, वड्डा, वारिआ, वेग्गला, सामला, सीअला, हुआ । अप्रत्यय : खग, पल्लव, गुण, कर, विसम, थण, देस, फुट्ट, सम, घर, मणोरह, भोग । 'आ' प्रत्यय : अद्धा, अप्पणा, गोट्ठडा, घणा, घोडा, चडिआ, जाया, तणा, दिअहा, दिअहडा, दिट्ठा, दिण्णा, निसिआ, पयडा, मुआ, वव्या, रवण्णा,
संता, सिद्धत्था । 3.1. 'एं' प्रत्यय : अण्णे, अहरें, °उड्डाणे, कज्जे, क्खेवे, ते, दइों, दइवें,
मच्छे, वाएं, हत्थे; केर-एँ, किएँ, संदेसे”, हुंकारडएँ । 'इ' प्रत्यय : निच्छइ (358.1). 'एण' ('ऍण', 'इण') प्रत्यय : खणेण । इसी प्रकार कवण, जण, नह, पवसंत, फुटणअ, मोक्कलड, वास, सय, सिर इन अंवों से । : कोड्डे ण, तुहारे ण, पाणिएण : खगिण, वसिण, सरिण ।
'इ' प्रत्यय । जलि (382.2), कमलि (395.1), 'अलि', 'वल्लहई' (383.1). 3.2. 'एहि । ('इहि', 'ऍहि') प्रत्यय : चलेहि , पयारेहि, लक्खेहि ,
लोअणेहि, सहि , सरवरेहि , अस्थिहि , सस्थिहि, हस्थिहि , कसरेहि, कसरक्केहि , धुंटेहि, नयणेहि, वणेहि, सरेहि, सुअणेहि; 'हि' प्रत्यय : अंगहि , करहि, केसहि, गुणहि ।
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