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( xxxvii)
आख्यातिक धातु के अंग के प्रकार
अपभ्रंश में आख्यातिक रूप आख्यातिक अंग और प्रत्ययों से बना है । आख्यातिक अंग (1) आख्यातिक धातुमूलक (2) यौगिक या (3) संज्ञामूलक होता है ।
यौगिक-(क) उपसर्ग और आख्यातिक धातु के संयोगवाले :
अणुहर , पवस् , पडिपेक्खू, परिहर , विहस (तथा निज्जि, पन्भस , पसर , विछोड्, विणड्, विणिग्मव., विन्नास , संपड्, संपेस., संवल आदि ।)
(ख) नामादि और आख्यातिक धातु ('कर , 'हो') के संयोगवाले : बलिकर (वसिकर ), खसप्फसिहो, चुण्णीहो, लहुईहो ।
संज्ञामूलक अर्थात् जो मूलतः संज्ञा या विशेषण हों ऐसा : तिक्ख , पल्लव , मउलिअ, घणा ।
आख्यातिक धातुमूलक : शेष : कर., आव , मर , लह , मिल , पड़, जा, खा, दे, हो, मुअ इत्यादि ।
इन मौलिक अंगों पर से अंगसाधक प्रत्यय आदि द्वारा निम्नलिखित अंग सिद्ध हुए हैं :
प्रेरक अंग-प्रत्ययसाधित प्रकार : 'आव' प्रत्ययवाले : उठाव , कराव, घडाव , नच्चाव , पठाव, हराव । 'अव' प्रत्ययवाले : उल्हव , ठव , विणिम्मव । (दोनों प्रत्यय मुलतः संस्कृत के 'आप' प्रत्यय से हुए हैं ।)
-विकारसाधित प्रकार :
केवल स्वरविकारवाले : (अ> आ) पाड्, बाल , मार , वाल , वाह, विन्नास ; (ऊ>ओ) तोस ।
स्वर तथा व्यंजन दोनों के विकारवाले : फेड्, (मूल 'फिट्ट'), विछोड् (मूल 'विछुट्ट'), फोडू (मूल 'फुटू)।
कर्मणि अंग : प्रत्ययसाधित प्रकार : 'इअ' प्रत्ययवाले : आण , जाण , पाव , बोल्ल , माण , वण्ण , पठाव ।
(इ)उन ' प्रत्ययवाले : कंप , गिल , चंप , छोल्ल , दस फुक्क्, मिल, लज्ज , विणडू, सुमर , जा, जो, कि, छि, दि, पि : ('ज्ज्' प्रत्ययवाले) खा । (दोनों प्रत्यय मूल में संस्कृत कर्मणि के 'य' में से हुए हैं ।)
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