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________________ ( xxiii ) ( 23 ) 'संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और भूतभाषा ये चारों भाषायें काव्यशरीर के रूप में प्रयुक्त की जाती है ।' (वाग्भट वारहवीं शताब्दी | (24) 'भाषाभेद के अनुसार ( काव्य ) के छः भेद संभव हैं । प्राकृत, संस्कृत, माग, पिशाचभाषा और शौरसेनी तथा छठा देशविशेष के अनुसार अनेक भेदों से युक्त अपभ्रंश ।' (रुद्रट, नवीं शताब्दों ) । ( 25 ) 'अमुक अर्थ की संस्कृत द्वारा रचना संभव है, तो किसी की प्राकृत द्वारा और कोई अपभ्रंश द्वारा, उसी प्रकार किसी अर्थ को पैशाची, शौरसेनी या मागधी में गूँथा जा सकता है । (यह राजशेखर का अनुसरण करते हुए दिया गया है ) ( भोज, दसवीं शताब्दी) । । (26) जगत के समस्त प्राणिओं का व्याकरण आदि संस्कार से रहित ऐसा सहन वाणीव्यापार ही प्रकृति है उसमें से उद्भवित या वही प्राकृत | वही देशविशेष के अनुसार और संस्करण से विशिष्टता प्राप्त कर संस्कृत आदि के बाद के स्वरूपभेदों को प्राप्त करती है ।... .. और फिर प्राकृत ही अपभ्रंश है, इसे अन्य लोगों ने उपनागर, आभीर और ग्राम्य यों त्रिविध बताया है, इसके निरसन के लिये ( सूत्रकार ने ) 'भूरिभेदः' यों कहा है । किस प्रकार १ 'देशविशेष के कारण । इसके लक्षण का योग्य निर्णय लोगों से करवाया जाये ।' ( नमिसाधु, ग्यारहवीं शताब्दी) ( 27 ) 'संस्कृत आदि छ: भाषा' : संस्कृत, प्राकृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंश को प्रकार की भाषा कही जाती है ।' (हेमचन्द्र, बारहवीं शताब्दी) । ( 28 ) 'गौड आदि संस्कृत स्थित है, लाटदेश के कवि प्राकृत में दृढ रुचिवाले हैं, सकल मरुभूति, टक्क और भादानक के कवि अपभ्रंश युक्त प्रयोग करते हैं, अवंती, पारियात्र और दशपुर के कवि पैशाची का आश्रय लेते हैं, जबकि मध्यदेशवासी कवि सर्वभाषासेवी हैं । ( राजशेखर, ईसवीसन् 900 के आसपास ) । ( 29 ) ( ( गजासन के ) पश्चिम में अपभ्रंश कवि' ( राजशेखर ) f ( 30 ) 'संस्कृत द्वेषी लाटवासी मनोज्ञ प्राकृत को सुनना पसंद करते हैं । गुर्जर अन्य के नहीं अपने ही अपभ्रंश से संतुष्ट होते हैं' (भोज, दसवीं शताब्दी) अपभ्रंश क्त होती है । जन1. राजशेखर में इस प्रकार के अन्य तीनचार उल्लेख 'काव्यमीमांसा' में तथा एक 'बालरामायण' में हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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