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सही में तो -अडअ- प्रत्यय का स्त्रीलिंग -अडिअ होता । सं. -(अ)कप्रत्यय का स्त्रीलिंग -इका हैं । (बालक, बालिका)। उसके अनुसार गौर पर से *गोरडअ, और स्त्रीलिंग गोरडिआ होगा । *गोरडिआ के, अंत्य स्वर के ह्रस्व भाव के नियम अनुसार गोरडिअ और इअ का ई यों स्वरसंकोच की प्रक्रिया के कारण गोरडी-ऐसा विकासक्रम है ।
___432. झुणि (< ध्वनि पुं.) अपभ्रंश में स्त्रीलिंग बना है । कुछ इकारांत पुल्लिंग संज्ञाये इस प्रकार इकारांत स्त्रीलिंग संज्ञा से प्रभावित है । गुज. आग (स्त्री.)< आगि < अग्गि < अग्नि इसका दूसरा उदाहरण है । गुज. और हिन्दी में धन स्त्रीलिंग है । हिंदी में तो इसके प्रभाव से फारसी मूल का आवाज़ भी स्त्रीलिंग है । (वैसे हिन्दी मनि स्त्रीलिंग है ।) अपभ्रंश में मूल के लिंगतंत्र में हुए परिवर्तन के लिये देखिये सूत्र 445 ।
435. देखिये सूत्र 407 (1) विषयक टिप्पणी । उदाहरण: कामचलाऊ ।
437. तल = सं. -ता- प्रत्यय (वीरता आदि का)। °प्पण का मूल वैदिक त्वन- है । वन- के त्व- का द्विविध विकास होता है। उच्चारण में ओष्ठयता प्रधान रहने पर व की ओष्ठयता और त की सघोषता मिलकर -त्व->-प्पऐसा विकास हुआ है। और दंत्यता प्रधान रहने पर -त्व->-त्त- ऐसा विकास हुआ है। अतः त्वन- में से पण- और °त्तण प्राप्त होते हैं। हिंदी बचपन, लडकपन, गुज. बचपण, नानपण आदि में यह असर आया है ।
सूत्र 438 से 443 कुछ कृत्-प्रत्ययों के बारे में है ।।
438. सं. 'तव्य-, 'इतव्य- पर से स्वार्थिक --अ- जुड़कर अपभ्रंश के प्रत्यय बने हैं । °एव्वउँ पर से °एवउँ> °इवउँ> गुज. अq> (करेव्बउँ> करेवउँ > करिवउँ > गुज. करई) ऐसा विकास हुआ है ।
438. (1) रकार सुरक्षित रखे हुए रूपों को ध्यान में रखे जाये ।
ध्रु के लिये देखिये सूत्र 360 (1) विषयक टिप्पणी । संदर्भ के बिना अर्थ अस्ष्ट रहता है ।
(2). अतिशय अनुराग के हिस्से में सहना भी बहुत होता है ! रत्त- श्लिष्ट है । 'लाल' और 'अनुरक्त' दो अर्थ ।
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