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________________ १३३ 360. (1) चिट्ठदि, करदि का °दि सू . 396 के अनुसार । भ्रान्ति के त् में रकार के प्रक्षेप होने पर भैत्रि । ध्रु और त्रं उपलब्ध अपभ्रंश साहित्य में नहीं मिले हैं । वर्तमान तृतीय एकवचन का 'दि प्रत्यय, प्रंगणि और भंत्रि में रकार की सुरक्षा और प्रक्षेप तथा ध्र और त्रं ये रकारवाले तथा असाधारण और विरल रूप सूचित करते हैं कि उदाहरण में प्रस्तुत अपभ्रंशभेद विशिष्ट है । त्रं को तं में रकार का प्रक्षेप से सिर्फ माना जा सकता है । ध्रु का ध्वनि की दृष्टि से जं के साथ सम्बन्ध जोड़ना असंभव है। संभव है ध्रुवम् पर से वह बना हो और गलत ढंग से उसे जं के साथ जोड़ दिया गया हो । 438 में भी ध्र का प्रयोग हुआ है, वहाँ जं अर्थ लिया नहीं जा सकता। ध्रुवम् लेने पर अर्थ ठीक से बैठ जाता है । ध्र में संयोग का उच्चार शिथिल है। देखिये 345 (2)। संदर्भ के बिना अर्थ स्पष्ट नहीं होगा । परंतु ध्वनि ऐसा समज में आता है कि मेरा पति घर आँगन में दिखाई देता है उतना समय ही वह रणभूमि में नहीं होता । अर्थात् जब घर से बाहर जाता है तब उसे रंगभूमि में ही जाना होता है । (2) बोल्लिअइ : विध्यर्थ का भाव है । गुजराती में वह व्यापक है । एवं न बोलीए = (एसा ण वोलियेगा । निव्वहइ का रूपांतर निव्वहइ पर से हिं. निभाना, गुज. नभे । उदाहरण एक कहावत रूप है । छन्द की दृष्टि से यह दोहे की 13 मात्राओंवाला चरण है। 361. कामचलाऊ उदाहरण । 362. साहित्य में पुंल्लिंग में एहु ही मिलता है । क्वचित् एकार ह्रस्व होता है और लेखनभेद से इहु भी होता है । मूल सं. एषः । इहु परसे हिन्दी यह । नपुंसकलिंग में साहित्य में एउ, एउ, इउ विशेष मिलते हैं । 363 (2). कामचलाऊ उदाहरण । 364. वैदिक बोलियों में एषः के ए° की भांति ज्यादा दूरी के पदार्थ के लिये ओ° सर्वनाम था । ओषः पर से आया हुआ ओहु, उहु अपभ्रंश में प्रयुक्त हुआ है । हेमचन्द्रने इसका जिक्र नहीं किया है । इस उहु पर से ही हिन्दी का वह आया है । नपुंसकलिंग को बहुवचन का रूप ओइ । आधुनिक गुजराती में ओ। प्रांतीय ओलु, वां, उंआं, ओम आदि में भी ओ° मिलता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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