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________________ १३४ 365 (2). उदाहरण की भाषा शुद्ध महाराष्ट्री प्राकृत हैं, अपभ्रंश नहीं । छन्द गाथा, उसका पथ्या नामक भेद | नाप : 4+4+4, +4+4+ U-७+ 4+--30 मात्रा । बारह मात्रामों पर यति । दो से अविभाज्य गणों में जगण नहीं आ सकता । ___366. साहू का मूल सर्वः खलु है और यही सही है । सव्वु हु> सावु हु>साव-हु साहु ऐसा विकासक्रम है । पीशेल साह का मूल संस्कृत शश्वत् मानते हैं परंतु यह सही नहीं है । साह पर से सवि आदि के प्रभाव में आधुनिक गुजराती में सहु>सो हुआ । तणेण के बाद कारणेण अध्याहृत समजा जाये। हरिभद्र-सूरि की 'आवश्यकवृत्ति' में एतस्स तणएण (पत्र 93a) इसके कारण और हत्थस्स तणएण (पत्र 95b) 'हाथ के कारण' एसे प्रयोग पाये जाते हैं । पर आधुनिक हिन्दी में प्रचलित है । मोक्कलड : सं. मुक्त-का सादृश्यबल से मुक्क-, उस में स्वार्थिक -ल- प्रत्यय जुड़ने पर मुक्कल- । संयुक्त व्यंजन पूर्व का इ और उ ह्रस्व ए या ह्रस्व ओ के रूप में भी प्राकृत में मिलता है । अतः मुक्कल- से मोकल- और स्वार्थिक -ड- प्रत्यय जुड़ने पर मोकलड-। सव्व- के अलावा अपभ्रंश साहित्य में साव- भी मिलता है । सव्व- में से हिन्दी सब, और साव- पर से गुजराती साव 'नितांत' आया । 367. काइँ = आधुनिक गुजराती कां । कवण अब केवल काव्यभाषा में प्रयुक्त होता है | हिन्दी कौन, गुज. कोण. कवणु का सम्बन्ध पालि पन, संस्कृत कः पुनः के साथ है। (1). नायिका का संदेश लेकर गयी हुई दूती नायक के साथ रतिक्रीड़ा करके लौटती है तब जिसे सबकुछ पता है ऐसी चतुर नायिका, दंतक्षत छुपाने के लिये सिर झुकाती दूती को यह व्यंग्योक्ति कहती है । वयण शिलप्ट है । 'तेरा वचन न निभाये और 'तेरा चेहरा-अधर खंडित करे' ऐसे दो अर्थ । (4). कज्ज- (सं. कार्य.) का अर्थ यहाँ 'कारण' है । कज्जे कवणेण 'किस कारण से' । 368 से 374 तक के सूत्र द्वितीय पुरुष सर्वनाम के विशिष्ट रूप प्रस्तुत करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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