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________________ १२१ सूचित करते या छन्द-पूरक प्रयोग मुक्त रूप से हुए हैं । हेमचन्द्र के उदाहरणों में स्वार्थिक ड वाले शब्दों के लिये देखिये भूमिका में 'ध्याकरण की रूपरेखा ।' द्विरुक्त और अनुकरण-शब्द दड़बड़ का अर्वाचीन गुज. दडबड, दडबडी, दडबडवु, के साथ सम्बध है। इनके साथ गुज गडबड, 'तडबड', 'लथबथ', 'लदबद'. 'कलबल' और रसबस जैसे तथा तरवर, चळवळ, टळवळ, 'लटवर' 'सरवळ', जैसे द्विरुक्ति मूलक शब्दों की रचना तुलनीय है । विहाणु का मूलरूप कल्पित विभानम् ( = वि + भा का भू. कृ. जो संज्ञा के रूप में प्रयुक्त हुआ है) समझना चाहिये-जैसे के प्रभात शब्द प्र+भा का भू. कृ. है। छन्द : दोहा : मात्रा 13 (= 6 +4+m या ---)/11 (= 6+ ~~ - + - या 6+ - -+-)। अधिकांश उदाहरण इसी छन्द में है इसलिये जहाँ इस दोहा छन्द के अतिरिक्त अन्य छंद आता वहाँ उसका निर्देश किया है । जहाँ छद के विषय में कुछ कहा नहीं हों वहाँ दोहा छद ही समझा जाये । 330/3. माता की-संभवतः वेश्यामाता की अपनी पुत्री को संबोधित उक्ति । भोजकृत 'शृगारमंजरी-कथा' जैसी कृतिओं में किस युक्ति से पुरुष को वश में करके कैसे उसका धन ले लिया जाये उसकी व्यावसायिक शिक्षा अक्का वेश्या को देती है, यह विषय है । 330/4. मुणीसिम 'अनियमित' रूप से गढ़ा गया है । सं. मनुष्य का प्रा. मणूस । पुरिस के प्रभाव तले मणूस का मुणीस और भाववोचक इम (स्त्री.) प्रत्यय लगने पर मुणीसिम 'मनुष्यत्व' । 331. हेमचन्द्र प्रायः (अंग+ जोड़) ऐसे जहाँ नामिक रूप अलग किया जा सके वहाँ जोड़ को विभक्ति प्रत्यय मानते लगते हैं और जहाँ केवल अंग के अंत्य स्वर का ही विकार हुआ हो वहाँ केवल अंगविकार और विभक्ति-प्रत्यय लुप्त हुआ मानते हैं । इसमें सप्तमी एकवचन का रूप एक अपवाद लगता है। इसलिये अकारांत पुंल्लिंग-नपुंसकलिंग के प्रथमा एकवचन में नरु, कमलु जैसे रूप नर-, कमलके अंत्य अकार का ऊ बनने पर सिद्ध हुए हैं और उसमें प्रथमा एकवचन का कोई प्रत्यय लगा नहीं है ऐसा प्रतिपादन है । पुल्लिंग प्रथमा बहुवचन में भी नरा जैसे में प्रत्यय लुप्त मान कर अंत्य स्वर दीर्घ बना है ऐसा माना है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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