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________________ १२० और सामलो जैसे ओकारांत रूप (जैसे कि घोडो, छोकरो) गुजराती, ब्रज जैसी भाषा में लाक्षणिक बन जाते हैं । हेमचन्द्र द्वारा दिये गये उदाहरणों में आकारांत और अउकारांत दोनों प्रकार के रूप हैं। अर्थात् स्पष्ट अंदाजन ग्यारवीं शताब्दी से ही इस प्रकार की भिन्नता के बीज अंकुरित हो चुके थे। उदाहरणों में प्रथमा एकवचन के आकारांत रूप के लिये देखिये भूमिका में 'व्याकरण की रूपरेखा' । ऊपर कहे अनुसार विकल्प में स्वार्थिक क जुड़कर कई नामों (और विशेष रूप से विशेषणों और कृदंतों) के अपभ्रंश में दो-दो अंग होने पर और उन्हें विभक्तिप्रत्यय लगने पर उपांत्य अ अथवा आ ऐसे दोहरे रूप होते हैं । इसी प्रकार अग के अंत में ई (पुराना) या इ (नया) का और ऊ (पुराना) या उ (नया) का विकल्प था । छन्द की सुविधा के अनुसार इन में से एक या दूसरा रूप इस्तेमाल होता । इस लिये भी ऐसा लग सकता है कि अंत्य स्वर का मान अनिश्चित या शिथिल होता है । 330/1. धण और ढोला प्राचीन राजस्थानी-गुजराती साहित्य में ख्यात है। व्यवहार में गाये जाते सीमंतोन्नयन संस्कार के गुजराती गीतों में धण शब्द सीमंतिनी के लिये प्रयुक्त हुआ है और 'ढोला मारु' की लोककथा का नाम किसने सुना नहीं है ! संभवतः नाइ (हिं. नाई) यह नावइ का संक्षिप्त रूप है । नावइ < नव्वइ = संस्कृत ज्ञा- के कर्माण वर्तमान तृतीय पुरुष एकवचन है | गुजराती 'जाणे' (मानों) की तरह ही वह उत्प्रेक्षा सूचित करने के लिये प्रयुक्त होता है। गुजराती और हिन्दी में पुं. कसवट्टअ नहीं, परंतु स्त्री. कषपट्टिका-कसवट्ठिअ-कसोटी, कसौटी आये हैं। इसी भाव के अपभ्रंश पद्य के लिये देखिये 'परिशिष्ट' । छन्द : 10 (34+3+ 3)/10 (4+4+2)। पहले चरण में दस के स्थान पर नौ मात्रा हैं वहाँ संमव है पाठ त्रुटित हों। 330/2. स्वार्थिक ड प्रत्यय (देखिये सूत्र 429) लौकिक या उत्तरवर्ती अपभ्रंश की लाक्षणिकता लगती है । चारणी और पुराने लोकगीतों की भाषा में (और इसी अनुसरण में अर्वाचीन काव्यभाषा में भी) उसके लाद, लघुता या कोमलता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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