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अनुवाद विरहाग्नि की ज्वाला से पीड़ित (क्रिसी) पथिक को मार्ग में देखा तो
सर्व पथिकोने मिलकर उसे ही अंगीठी बना लिया ! वृत्ति 'डड' । डित् 'अड'उदा० (२) महु कंतहों बे दोसडा (देखिये 379/3) । वृत्ति डुल्ल । डित् 'उल्ल' । उदा० (३) एक्क कुडुल्ली पंचहि रुद्धी । (देखिये 422/14) । 430
योगजाश्चैषाम् ॥ और उनके संयोग से बने हुए । वृत्ति अपभ्रंशे अडडडुल्लानां योगभेदेभ्यो ये जायन्ते 'डडअ' इत्यादयः प्रत्यया
स्तेऽपि स्वार्थे प्रायो भवन्तिः । डडअ । अपभ्रंश में, 'अ', डित् 'अर्ड' और डिन् 'उल्ल' के भिन्न-भिन्न संयोग से जो डित् 'अडअ' आदि प्रत्यय बनते हैं वह भी प्राय: स्वार्थे
लगते हैं । (जैसे कि) डित् 'अडउदा० (१) फोडे ति जे हिअडउँ अप्पणउ । (देखिये 350/2)। वृत्ति अत्र 'किसलय' (१/२६९) इत्यादिना य-लुक् । डुल्लअ ।
यहाँ "किसलयं” (1/267) आदि सूत्र के अनुसार य का लोप (हुआ
है) । डित् 'उल्लभ'उदा० (२) चूडुल्लउ चुन्नीहोइसइ । (देखिये 395/2) वृत्ति डुल्लडड । डित् 'उल्ल'-डित् 'अड'उदा० (३) सामि-पसाउ स-लज्जु पिउ सीमा-संघिहि वासु ।
पेक्खिवि बाहु-बलुल्लडा घण मेल्लइ नीसासु ॥ शब्दार्थ
सामि-पसाउ-स्वामि-प्रसादम् । स-लज्जु-स-रज्जम् | पिउ-प्रियम् । सीमा-संधिहि -सीमा-सन्धौ । वासु-वासम् । पेक्खिवि-प्रेक्ष्य । बाहू-बलुलाडा-बहु-बलम् । धण (दे.) प्रिया । मेल्लइ (दे.)-मुञ्चति । नीसासु-निःश्वासम् । स्वामि-प्रसादम् , स-रज्जम् प्रियम् , सीमा-तन्धो वासम्, बाहु-बलम् (च) प्रेक्ष्य प्रिया निःश्वासम् मुञ्चति ।
छाया
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