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वृत्ति
अनुवाद मालिक की कृपा, शरमीला प्रियतम, सीमाये जहाँ मिलती हैं वहाँ
निवास और (प्रियतम का) बाहुबल-(यह) देखकर प्रिया आहें भरती है । वृत्ति
अत्रामि ‘स्यादौ दीर्घ-द्रस्वौ' (330) इति दीर्घः । एवंयहाँ 'अम' (= द्वितीया एकवचन का प्रत्यय) लगने पर 'स्यादौ दीर्घ
स्वो (सूत्र 330) इस प्रकार दीर्घ हुआ है) । उसी प्रकार : उदा० (४) बाहु-बलुल्लडउ । बाहु-बलम् । बाहुबल । वृत्ति अत्र त्रयाणाम् योगः ।
यहां तीन (प्रत्ययों) का संयोग (है)। 431
स्त्रियां तदन्ताड्डीः ॥ वे अंत में हैं उनके स्त्रीलिंग में डित् 'ई' । अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानेभ्यः प्राक्तन-सूत्र-द्वयोक्तप्रत्ययान्तेभ्यो डी: प्रत्ययो भवति । अपभ्रंश में अगले दो सूत्रों में बताये हुए प्रत्यय जिनके अंत में होते
हैं वे स्त्रीलिंग में हो तब उन्हें उित् 'ई' प्रत्यय लगता है । उदा० (१) पहिआ दिट्ठी गोरडी दिट्ठी मग्गु निअंत ।
अंसूसासे हि कंचुआ तितुव्वाणु करंत । शब्दार्थ पहिआ-पथिक । दिट्ठी-दृष्टा । गोरडी-गौरी । दिट्ठी-दृष्टा । मग्गु
मार्गम् । निअंत (दे.)-अवलोकयन्ती । अंसूसासे हि-अश्रूच्छ्वासः । कंचुआ-कञ्चकम् । तिंतुव्वाणु-तिमितोद्वानम् (= आर्द्र-शुष्कम् ) । करत-कुर्वन्ती । 'पथिक, गौरी दृष्टा' ? 'दृष्टा, मार्गम् अवलोकयन्ती अश्रूमछवासैः च
कञ्चकम् आर्द्र-शुष्कम् कुर्वन्ती ।' अनवाद पथिक, गोरी को देखा ?' '(हाँ) देखा-(तुम्हारी) राह देखती (और)
आँसू और उसाँसों से चोली को भिगोती और सूखाती !' उदा० (२) एकक कुडुल्ली पंचहि रुद्धी । (देखिये 422/14) 432
आन्तान्ताड्डाः ॥ अंत में 'अ' वाला अंत में हो तो उसके बाद डित् 'आ' । वृत्ति
अपभ्रंशे स्त्रियां वर्तमानदप्रत्ययान्त-प्रत्ययान्तात् डा-प्रत्ययो भवति । डथपवाद: ।
छाया
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