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________________ 424 वृत्ति घइमादयोऽनर्थकाः । 'घई' आदि अर्थरहित । अपभ्रंशे घइमित्यादयो निपाता अनर्थकाः प्रयुज्यन्ते । अपभ्रंश में अर्थरहित 'धइँ' आदि निपातों का प्रयोग होता है । अम्मडि पच्छायावडा पिउ मलाहअउ विप्रालि । घई विवरेरी बुद्धडी होइ विणासहों कालि ॥ शब्दार्थ अम्मदि-अम्ब । पच्छायानडा-पश्चात्तापः । पिउ-प्रियः । कलहिअउकलहायितः । विशलि-विकाले । घई-(पादपूरण :) नूनम् । विवरेरीविपरीता । बुद्धडी-बुद्धिः । होइ--भवति । विणासह-विनाशस्य । कालि-काले । छाया अम्ब, (मे) पश्चात्तापः (यद्) प्रियः विकाले कलहायितः । नूनम् विनाशस्य काले बुद्धिः विपराता भवति । माँ, (मुझे) पछतावा (हो रहा है कि) प्रियतम के साथ शाम को (ही) झगड़ा हुआ । सही बात है ! विनाशकालट में बुद्धि विपरीत हो जाती है। अनुवाद 425 वृत्ति आदि-ग्रहणात् खाइँ इत्यादयः । आदि लेते हुए, 'खाइँ' आदि । तादथ्येयकेहि -तेहि-रेसि-रेसिं-तणेणाः ॥ 'उसके लिए' के लिए 'केहि', 'तेहि', 'रेसि', 'रेसि', 'तणेण' । अपभ्रंशे तादथ्ये द्योत्ये 'केहि', 'तेहि', 'रेसि', 'रेसिं', 'तणेण इत्येते पञ्च निपाताः प्रयोक्तव्याः ॥ अपभ्रंश में, 'उसके लिए' अर्थ सूचित करने के लिए 'केहि.', 'तेहि, 'रेसि', 'रेसिं' और 'तणेण' ऐसे पांच निपात का प्रयोग करें । उदा० (१) दोल्ला एह परिहासडी अइ भण कवणहि देसि । हउँ झिज्जउँ तउ केहि पिअ तुहुँ पुणु अन्नहे रेसि ।। वृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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