________________
अनुवाद खचाक्' 'खचाक्' (-चप् चपू) खाया नहीं जाता, या 'गट' 'गट' पीया
नहीं जाता ! प्रियतम को (खाली) यों ही (सिफ) आँखों से देखकर
(ही) जी सुख-शा होती है। वृत्ति इत्यादि । आदि । उदा० (३) अज्ज-वि नाह महु-डिज घरि सिद्धत्था वंदेइ ।
ताउँ-जि विरहु गवक्खेहि मक्कड-घुग्घिउ देइ । शब्दार्थ अज्ज-वि-अब अपि। नाहु-नाथ: । महु-ज्जि-मम एव । घरि-गृहे ।
सिद्धत्था-सिद्धार्थान् । = सर्षपान्) । वदेइ-वन्दते । ताउँ-जि-तावत् एव । विरहु-विरहः । गवखेहि-गवाक्षेषु । मक्कड-घुग्घुिउ (दे.)-मर्कट
चेष्टाः । देइ-ददाति । छाया अटा अपि नाथः मम गृहे एव सर्षपान वन्दते । तावत् एव विरहः
गवाक्षेषु मर्कट-चेष्टाः ददाति । अनुवाद अभी तो पति (मेरे) घर में ही सरसों की वंदना कर रहे हैं, (पर)
इतने में ही विरह झरोखों से मुँह-चिढ़ा रहा है । वृत्ति आदि-ग्रहणात् ।
(सूत्र का) आदि (शब्द) लेते हुएउदा० (४) सिरि जर-खंडी लोमडी गलि मणिअडा न वीस ।
तो-वि गोट्ठा कगविआ मुद्धएँ उट्ठ-बईस ॥ शब्दार्थ सिरि-शिरसि । जर-वंडी-जरा-खण्डिता । लोअडी-लोमपटो । गलि
गले । मणिअडा-मणयः । नन । वीस-विंशतिः । तो-वि-तद् अपि । गोडा-गोष्ठा: । कराविका-कारिताः । मुद्धऍ-मुग्धया ।
उठ्ठबईस-उत्थानोपवेशनम् । छाया
शिरसि जरा-खण्डितो लोमपटी, गले (च) मणयः न विंशतिः (अपि) । तद् अपि मुग्धया गोष्ठाः उत्थानोपवेशनम् कारिताः ।
अनुवाद
सिर पर था छीजा हुआ पुराना कम्बल (और) गले में (पूरे) बीस मनके (भी) न (थे) (और) फिर भी मुग्धाने गोष्ठों से उठक-बैठक करवायी । इत्यादि । आदि ।
वृत्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org