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________________ अनुवाद हे हिरनों, निश्चित (हो कर) जल पीओ। जिसकी हुंकार से मुँह में से तिनके गिरते हैं ( = गिरते थे), वह केसरी (तो) चला गया । उदा० (२१) अह भग्गा अम्हहँ तणा । (देखिये 379/4) वृत्ति मा भैषीरित्यस्य मब्भीसेति स्त्रीलिङ्गम् । 'मा भैषीः' इसका स्त्रीलिंग ‘मन्भीस' । उदा० (२२) सत्थावत्थह आलवणु साहु-वि लोउ करेइ । आदन्नहँ मन्भी सडी जो सज्जणु सा देइ ॥ शब्दार्थ सत्थावत्थहँ-स्वस्थावस्थानम् । आलवणु-आलपनम् । साहु-वि-सर्वः अपि । लोउ-लोकः । करेइ-करोति । आदन्नहँ = आर्ता म् । मन्भीसडी मा भैषीः । जो-यः । सज्जणु-सज्जनः । सो-सः । देइ-ददाति । छाया स्वस्थावस्थानाम् (प्रति) सर्वः अपि लोकः आलपनम् करोति । आर्तानाम् (तु) यः सज्जनः स (एव) मा भैषी: (इति) ददाति । अनुवाद स्वस्थ अवस्थावालों के साथ (तो) सभी लोग बाते करते हैं । (परंतु) दुःखिओं को (तो) जो सज्जन होते हैं (वही) अभयवचन (=आश्वासन) देते हैं । वृत्ति यद् यद् दृष्टं तत् तदित्यस्य जाइठिआ । 'यद् यद् दृष्टं तद्' का 'जाइट्ठिआ' | उदा० (२३) जइ रच्चसि जाइठिअऍ हिअडा मुद्ध-सहाव । लोहें फुट्टणएण जिव घमा सहेसइ ताव । शब्दार्थ जइ-यदि रच्च स-रज्यसे । जाइटूठि अऍ-यद् यद् दृष्टं तेन तेन । हिअडा-हृदय । मुद्ध-सहाव-मुग्ध-स्वभाव । लोहे-लोहेन । फुट्टणएम-- स्फुटनशीलेन । जिव-यथा, इव । घणा-बहवः सहेसइ-सहिष्यते । ताव-तापाः । छाया मुग्ध-स्वभाव हृदय, यदि यद् यद् दृष्ट तेन रज्यसे (तर्हि) स्फुटनशीलेन लोहेन इव बहवः तापाः सहिष्यते । हे मुग्ध स्वभाववाले हृदय, यदि (तु) जो जो देखा है उसमें डूबा (रहेगा), तो 'तूट जाने वाला लोहा की तरह बहुत ताप सहना होगा। अनुवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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