SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 143
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७८ अनुवाद कहते हैं कि कृपण न खाता है, न पीता है, न रुपया (धेला ) धर्मार्थ में खर्च करता है । इसमें ( इतना वह ) नहीं जानता है कि कहीं से यम का दूत एक क्षण में ही आ धमकेगा ( = पहुँच जायेगा) । वृत्ति अथयोऽहवइ । 'अथवा' का 'अहवई' । उदा० (२) अहवइ न सु-वसह एह खोडि | शब्दाथ अहवइ-अथवा । -न । सु-सह-सु-वंशानाम् । एह-एषा (एषः)। खोडि (दे.)-दोषः । छाया अथवा न एषः मु-वंशानाम् दोषः । अबुवाद अथवा तो कुलीनों के लिये वह दोष नहीं है। वृत्ति प्रायोऽधिकारात् । प्रायः अधिकार से । उदा० (३) जाइज्जइ ताहँ देसहइ लब्भइ पिअहो पवाणु । जइ आवइ तो आणियइ अहवा तं जि निवाणु ।। शब्दार्थ जाइज्जइ-गम्यते । तहि-तस्मिन् । देसडइ-देशे । लम्भइ-लभ्यते । पिअहो -प्रियस्य । पाणु-प्रमाणम् । जइ-यदि । आवइ-आगच्छति । तो-ततः । आणिअइ-आनीयते । अहवा-अथवा | तं-तद् । जि-एव । निवाणु-निर्वाणम् (= अन्तः) । छाया तस्मिन् देशे गम्यते ( यत्र) प्रियस्य प्रमाणम् लभ्यते । यदि (सः ) आगच्छति ततः आनीयते । अथवा सः एव अन्तः । अनुवाद उस देश में जाया जाता हूँ (= जाता हूँ ) (जहाँ) प्रिय के (होने का) प्रमाण मिले । यदि (वह) आयेगा तो (लौटा) लिवायेगा ( = लाऊँगा) अन्यथा, वही (मेरा) निर्वाण ( = मेग अन्ट) । दिवो दिवे । 'दिवा' का 'दिवे'। उदा० (४) दिवे दिवे गगा-हाणु । (देखिये 399/1) वृत्ति सहरय सहुँ । 'सह' का 'सहुँ' । वृत्ति Jain Education International, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy