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ततस्तदोस्तोः ॥ 'ततस्', 'तदा' का तो। अपभ्रंशे 'ततस्', 'तदा' इत्येतयोस — तो' इत्यादेशो भवति । अपभ्रश में, 'ततस' और 'तदा' इन दो का 'तो' ऐसा यादेश होता है।
वृत्ति
उदा० 418
जइ भगा पारवडा तो सहि मज्झु प्रिएण। (देखिये 379/3) एवं-परं-सम-ध्रुवं-मा-मनाक एम्ब पर समाणु ध्रुवु में मणाउँ ॥ 'एवम्', 'परम्', 'समम्', 'ध्रुवम', 'मा', 'मनाक्' के 'एम्ब', 'पर', 'समाणु', 'ध्रुवु', 'म', 'मणाउँ' । अपभ्रंशे एवमादीनां एम्वादय आदेशा भवन्ति । एवमः एम्व ।
वृत्ति
अपभ्रंशे में, 'एवम्' आदि के 'एम्व' आदि आदेश होते हैं । 'एवम्। का 'एम्व':
उदा० (१) प्रिय-संगमि कउ निद्दडी पिअहो परोक्खहो केम्व ।
मइँ बिन्नि-वि विन्नासिआ निद्द न एम्ब न तेन ॥
शब्दार्थ प्रिअ-संगमि-प्रिय-सङ्गमे । कउ-कुतः । निद्दडी-निद्रा । पिअहों
प्रियस्य । परोक्खहों-परोक्षस्य । केम्व-कथम् । मइँ-मया । बिन्नि-विद्वे अपि । विन्नासिआ-विनाशिते । निद्द-निद्रा । न-न । एम्वएवम् । न-न । तेम्व-तथा ।
छाया
अनुवाद
प्रिय-सङ्गमे कुतः निद्रा । प्रियस्य परोक्षस्य (सत:) कथम् । मया द्वे
अपि विनाशिते । निद्रा न एवम्, न तथा ॥ प्रिय के संग में नोंद कहाँ से ( = कैसी) ? प्रिय आँखों से दूर हो तब (भी) कैसी ? मैंने तो (वह) दोनों ओर से गवायी-नोंद न ऐसे (और) न वैसे !
वृत्ति
परमः परः ।। 'परम्' का 'पर' ।
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