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छाया
अनुवाद
वृत्ति
उदा०
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वृत्ति
छाया
अनुवाद
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विरहानल - ज्वाला - पीडितः कः अनि पथिकः ( अत्र ) मङक्त्वा स्थितः । अन्यथा शिशिर - काले शीतल - जलात् कुतः धूमः उत्थितः ।
विरहाग्नि की ज्वाला से पीड़ित कोई पथिक ( यहाँ) डूब लगाकर ) रहा ( लगता है ) । अन्यथा शिशिरऋतु में (और जल से धुआं कैसे उठेगा ?
पक्षे || अन्य पक्ष में
( २ ) अन्नह ( = अन्यथा ) | वरना ।
कुतसः कउ कहतिहु ||
'कुतस' का 'कउ', 'कहतिहु' |
उदा० ( १ ) महु कंतहो गुट्ठ-विट्ठअहाँ उल्हवइ
शब्दार्थ
अपभ्रंशे 'कुतस्' - शब्दस्य 'कर', 'कहतिहु' इत्यादेशौ भवतः ।
अपभ्रंश में 'कुतसू' इस शब्द के 'कउ' और 'कहंतिहु' ऐसे दो आदेश होते हैं ।
( = डूबकी क्या ) शीतल
कपडा बलति ।
अह अपनणे, न भंति ॥
अह रिउ - रुहिरे महु-मम | कंतो-कान्तस्य । गुठ टूट्ठिग्रहों-गोष्ठ स्थितस्य । उकुः । झुंडा - कुटीरकाणि । ज्वलंति-चलन्ति । अह - अथ । रिउ - रुहिरेंरिपु - रुधिरेण । उल्बइ (दे.) निर्वापयति । अह-अथ । अप-स्वकीयेन । न-न । मंति-भ्रान्तिः ।
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मम कान्तस्य गोष्ठ - स्थितस्य (सतः ), कुतः कुटीरकाणि ज्वलन्ति । अथ रिपु- रुधिरेण निर्वापयति, अथ स्वकीयेनः न भ्रान्तिः ।
मेरा प्रियतम बस्ती में हो और झोंपड़े कैसे ( = क्योंकर) जले ? या तो वह (उसे) शत्रु के रक्त से बुझा दे, या तो अपने (रक्त से ) - ( इसमें कोई) संदेह है ही नहीं ।
उदा० (२) धूमृ कहं तिहु उट्ठिअउ । (देखिये 415 / 1 ) ।
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