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________________ छाया अनुवाद वृत्ति उदा० .416 वृत्ति छाया अनुवाद ७३ विरहानल - ज्वाला - पीडितः कः अनि पथिकः ( अत्र ) मङक्त्वा स्थितः । अन्यथा शिशिर - काले शीतल - जलात् कुतः धूमः उत्थितः । विरहाग्नि की ज्वाला से पीड़ित कोई पथिक ( यहाँ) डूब लगाकर ) रहा ( लगता है ) । अन्यथा शिशिरऋतु में (और जल से धुआं कैसे उठेगा ? पक्षे || अन्य पक्ष में ( २ ) अन्नह ( = अन्यथा ) | वरना । कुतसः कउ कहतिहु || 'कुतस' का 'कउ', 'कहतिहु' | उदा० ( १ ) महु कंतहो गुट्ठ-विट्ठअहाँ उल्हवइ शब्दार्थ अपभ्रंशे 'कुतस्' - शब्दस्य 'कर', 'कहतिहु' इत्यादेशौ भवतः । अपभ्रंश में 'कुतसू' इस शब्द के 'कउ' और 'कहंतिहु' ऐसे दो आदेश होते हैं । ( = डूबकी क्या ) शीतल कपडा बलति । अह अपनणे, न भंति ॥ अह रिउ - रुहिरे महु-मम | कंतो-कान्तस्य । गुठ टूट्ठिग्रहों-गोष्ठ स्थितस्य । उकुः । झुंडा - कुटीरकाणि । ज्वलंति-चलन्ति । अह - अथ । रिउ - रुहिरेंरिपु - रुधिरेण । उल्बइ (दे.) निर्वापयति । अह-अथ । अप-स्वकीयेन । न-न । मंति-भ्रान्तिः । Jain Education International मम कान्तस्य गोष्ठ - स्थितस्य (सतः ), कुतः कुटीरकाणि ज्वलन्ति । अथ रिपु- रुधिरेण निर्वापयति, अथ स्वकीयेनः न भ्रान्तिः । मेरा प्रियतम बस्ती में हो और झोंपड़े कैसे ( = क्योंकर) जले ? या तो वह (उसे) शत्रु के रक्त से बुझा दे, या तो अपने (रक्त से ) - ( इसमें कोई) संदेह है ही नहीं । उदा० (२) धूमृ कहं तिहु उट्ठिअउ । (देखिये 415 / 1 ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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