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________________ उदा० (१) जेवडु अंतरु रावण - रामह, तेवडु अंतरु पट्टण - गामहं ॥ शब्दार्थ छाया अनुवाद वृत्ति 408 वृत्ति जेवडु - यावत् | अंतरु - अन्तरम् । रावण - राम-रावण - रामयोः । तेवडुतावत् । अंतरु - अन्तरम् । पट्टनम - पट्टण - ग्रामयोः । यावत् अन्तरम् रावण - रामयोः तावत् अन्तरम् पट्टण - ग्रामयोः । उदा० (२) जेत्तुलो । तेतुलो । यावान् । तावान् । जितना । इतना | ६७ पक्षे ॥ अन्य पक्ष में : जितनी राम और रावण के बीच दूरी, उतनी (ही) नगर और गाँव के बीच दूरी । " वेद - किमया : || विकल में 'इदम्, 'किदम्' के 'य' से आरंभ होते का । अपभ्रंशे 'इदम् ' 'किम्' इत्येतयोरत्वन्तयोरियत्-कियतोर्यकारादेरवयवस्य डितू - ' एवढ' इत्यादेशो वा भवति । अपभ्रंश में अंत में 'अतु' हों ऐसे 'इदम्' और 'किम्' के- (अर्थात् 'इवत् ' और 'कियत्' के यकार से आरंभ होते अंश का डित् ऐसा 'एवड' आदेश विकल्प में होता है । वृत्ति पक्षे । अन्य पक्ष में । उदा० (२) एतुलो । केतुलो । छाया उदा० ( १ ) एवडु अंतरु । केवडु अंतरु | छाया इयत् अन्तरम् । कियत् अन्तरम् । इतना अन्तर । कितना अंतर ? Jain Education International इयान् कियानू । इतना । कितना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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