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________________ शब्दार्थ छाया अनुवाद शब्दार्थ छाया अनुवाद उदा० (३) जामहि विसमी कज्ज- गइ तामहि अच्छउ इयरु जणु 407 वृत्ति " तिलहुँ -तिलानाम् । तिलत्तणु-तिलत्वम् । ताउँ तावत् । पर- मात्रम् एव । जाउँ - यावत् । न-न । नेह - स्नेहाः । गलति - गलन्ति । नेहि-स्नेह | पण टूटइ-प्रणष्टे । ते-ते । ज्जि-एव तिल-तिला: । तिल-तिलाः । फिटविनष्ट्वा । खल- खलाः । होंति - भवन्ति । तिलानाम् तिलत्वम् तावत् एव, ते एव तिलाः, तिला : नष्ट्वा खलाः भवन्ति । ६६ तिल का तिलत्व तब तक ही होता है, जब तक ( उनका ) स्नेह ( = प्रेम, तेल) गल नहीं जाता । स्नेह नष्ट होने पर वही तिल तिल न रह कर 'खल' (= खली, घठ) बन जाते हैं । ♡ यावत् स्नेहाः न गलन्ति । स्नेहे प्रणष्टे । आस्ताम् । इयर - इतरः अंतर - अन्तरम् । देव ददाति । जाहि यावत् । विसमी - विषमा । जीवानाम् । मज्झे - मध्ये कज्ज - गइ - कार्य - गतिः । जीवहँएइ - ऐति । तामहि - तावत । अच्छउ । जणु - जनः । सुअणु-वि-मुजनः अपि । जैसे प्राणियों के बीच (ही), औरों की क्या लगते हैं) । जीवहँ मज्झे एइ | सुअणु-वि अंतर देइ || योवत् जीवानाम् मध्ये विषमा कार्य - गतिः एति तावत् आस्ताम् इतरः जनः, सुजनः अपि अन्तरम् ददाति । Jain Education International विषम दशा आती है ( = आ घिरती है) वैसे बात करें - सज्जन भी दूरी रखते हैं (= रखने वा यत्तदतोर्डेवडः ॥ विकल्प में 'यद्', 'तद्' के 'अतु' का डित् ऐसा 'एवड' | अपभ्रंशे 'यद्' 'तद्' इत्येतयोरत्वन्तयोत्रवित्तात्तोर्वकारादेरवयवस्य त्ि 'एवs' इत्यादेशो वा भवति । अपभ्रंश में अंत में 'अतु' हो ऐसे 'यद्', 'तद्' के- (अर्थात् ), 'यावत्', ' तावत्' के वकार से आरंभ होते अंश का डित् ऐसा 'एवड' आदेश विकल्प में होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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