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वृत्ति
उदा०
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एत्थु कुत्रात्रे ॥ 'कुत्र', 'अत्र' में 'एत्थु' । अपभ्रंशे 'कुत्र' 'अत्र' इत्येतयोस्त्रशब्दस्य डित् 'एत्थु' इत्यादेशो भवति । अपभ्रंश में 'कुत्र', 'अत्र' इनके 'त्र' शब्द का डित् एसा 'एत्थु' आदेश होता है। .........केत्थु-वि लेफ्णुि सिक्खु ।
जेत्थु-वि तेत्थु-बि एत्थु जगि ॥ (देखिये 404/1) 406
यावत्तावतोर्वादेर्म उ महि ॥ 'यावत्', 'तावत्' के 'व' से आरंभ होते का 'म', 'उँ', 'महि । वृत्ति
अपभ्रंशे यावत्तावदित्यव्यययोर्वकारादे ग्वयवस्य 'म', 'उ', 'महि" इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति । अपभ्रंश में 'यावत्', 'तावत्' इन अव्ययों का 'व' से आरंभ होते
अंश का 'म', 'उ', 'महि" ऐसे तीन आदेश होते हैं। उदा० (१) जाम न निवडइ कुंभ-यडि सीह-चवेड-चडक्क ।
ताम समत्तहँ मयगलहँ पइ पइ वज्जइ ढक्क । जाम-यावत् । न-न । निवडइ-निपतति । कुंभ-यडि-कुम्भ-तटे । सीह-चवेड-चडक (दे.)-सिंह-चपेटा-प्रहारः । ताम-जावत् । समत्तहसमस्तानाम् । मयगलहँ-गजानाम् । पइ पइ-पदे पदे । वज्जर-वाद्यते ।
ढक्क-ढक्का । छाया
यावत् कुम्भ-तटे सिंह-चपेटा-प्रहारः न निपतति तावत् समस्तानाम्
गजानाम् पदे पदे ढक्का वाद्यते । अनुवाद जब तक कुंभतट पर सिंह की थप्पड का फटका नहीं लगता, तब तक
(ही) समस्त हाथिओं के कदमों पर ढोल बजते हैं । उदा० (२) तिलहँ तिलत्तणु ताउँ पर जाउँ न नेह गलंति ।
नेहि पणट्ठ ते डिज तिल तिल फिटवि खल होति ॥
शब्दार्थ
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