________________
६३
छाया सखि, यदि प्रियः स-दोषः दृष्टः (तर्हि) माम् (प्रति) तथा निभृतम्
कथय, यथा तस्य पक्षापतितं मम मनः न जानाति । अनुवाद सखी, यदि (मेरा) प्रियतम अपराधी (है ऐसा तुमने) देखा हो, (तो)
मुझे (वह बात) ऐसे चुपके से बता ताकि उसका हिमायती (ऐसा) मेरा
मन (वह) जान न ले । उदा० (५) जिव जिव बंकिम लोअणहँ......
तिव तिव वम्महु निअय-सर.. ...(देखिये 344/2) उदा० (६) मइँ जाणिवे पिअ विरहिअहँ क-वि घर होइ विआलि । नवर मिअंकु-वि तिह तवई जिह दिणयह खय-गालि ।।
(देखिये 377/1) वृत्ति एवं जिघ-तिघावुदाहायौँ ।
इसी प्रकार 'जिघ', 'तिध' के उदाहरण दें ।
.402
वृत्ति
उदा०
यादृक्ताहक्कीहगीदृशां दादेहः ।। 'यादृश', 'तादृश', 'कीदृश' के 'द्' से आरंभ होनेवाले का डित् ऐसा 'एह'। अपभ्रंशे यादगादीनां दादेश्वयवस्य डित् 'एह' इत्यादेशो भवति । अपभ्रंश में, 'यादृश' आदि के 'द्' से आरंभ होते अंश का डित् ऐसा 'एह' आदेश होता है । मइँ भणिअउ बलि-राय तुहुँ केहउ मग्गणु एहु । जेह तेहु न-वि होइ वढ सइँ नागयणु एहु ॥ मइ-मया । भणिअउ-मणितः । बलि-राय-बलि-राज । तुहुँ-त्वम् । केहउ-कीहक् । मगाणु-मार्गगः । एहु-एषः । जेहु-यादृक् । तेहु-तादृक् । न-वि-न अपि । होइ-भवति । वढ-मूर्ख । सइँ -स्वयम् । नारायणुनारायणः । एहु-एषः ।। बलि-राज, मया स्वम् भणितः एषः कीदृक् मागणः (इति) । मूख', न अपि यादृक् तादृक् भवति । स्वयम् नारायणः एषः । बलिराज, मैंने तुम्हें कहा कि नहीं कि यह कैसा मांगनेवाला है । मूर्ख ऐसा वैसा (ऐरा-गैरा) नहीं है (यह) । यह (तो) है स्वयं नारायण ।
शब्दार्थ
छाया
'अनुवाद
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org