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छाया
अनुवाद
यथा तथा तीक्ष्णान् करान् गृहीत्वा यदि शशी अतक्षिष्यत, ततः (स:) जगति गौर्याः मुख-कमलेन कामपि सदृशताम् अलप्स्यत । कैसे भी कर के तीक्ष्ण किरण ले (ले कर, फिर) यदि शशी को तराशा गया होता, तो (वह) जगत में गौरी के मुखकमल से किंचित् समानता प्राप्त करता । आदिग्रहणाद् देशीषु ये क्रियावचना उपलभ्यन्ते ते उदाहार्याः । (सूत्र में) आदि (शब्द) के (किये गये) समावेश से, देशी (भाषा)ओं में जो क्रियावाचक शब्द प्राप्त होते हैं, उसके उदाहरण दें :
वृत्ति
उदा० (२) चूडुल्लउ चुण्णीहोइसइ मुद्धि, कबोलि निहित्तउ ।
सासानल-जाल-झलक्किअउ बाह-सलिल-संसित्तउ ॥ शब्दार्थ
चूडुल्लउ-कङ्कणम् | चुण्णीहोइसई-चूर्णीभविष्यति । मुद्धि-मुग्धे । कवोलिकपोले | निहित्तउ-निहितम् । सामानल-जाल-झलक्किअउ (दे.)
श्वासानल-ज्वाला-संतप्तम् । बाह-सल्लि-संसित्तउ-बाष्प-सलिल-संसित्तम् । छाया मुग्धे, कपोले निहित्तम् कङ्कणम् श्वासानल-ज्वाला-संतप्तम् बाष्प-सलिल
संसिक्तम् चूर्णीभविष्यति । अनुवाद मुग्धा, गाल के नीचे रखा हुआ (और इस लिये) निःश्वासाग्नि
की लपट से झुलसा हुआ (और) अश्रुजल से सिंचित (तुम्हारा) चूड़ा
चूरा बन जायेगा । उदा० (३) अब्भडवंचिउ बे पयइँ पेम्मु निअत्तइँ जावें ।
सव्वासण-रिउ-संभवहाँ कर परिअत्ता तावँ ।। शब्दार्थ अभडवंचिउ-अनुव्रज्य । बे-ढे । पय-पदे । पेम्मु-प्रेम (= प्रिया) ।
निअत्तइ-निवर्तते । जाव-यावत् । सम्वासण -रिउ-संभवहाँ–सर्वाशनरिपुसम्भवस्य ( = चन्द्रस्य) । कर-कराः । परिअत्ता-परिवृत्ताः । तावतावत् । (प्रियम् ) अनुव्रज्य यावत् द्वे पदे प्रेम ( = प्रिया) निवर्तते तावत् चन्द्रस्य
किरणाः परिवृत्ताः । अनुवाद (प्रिय को) विदा करके प्रिया जहाँ दो कदम लौटी वहाँ (इतने में तो)
चन्द्र के किरण लिपट गये ।
छाया
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