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________________ उदा० शब्दार्थ मुह-कवरिबंध तहे सोह धरहि नं मल-जुज्झु ससि-राहु करहि । तहे सहहिकुरल भमर-उल-तुलिअ नं तिमिर-डिंभ खेल्लंति मिलिअ । मुह-कबरिबंध-मुख-कबरीबन्धौ । तहे-तस्याः । सोह-शोभाम् । घरहि-घरतः | नं-ननु, यथा । मल्ल-जुज्झु-मल्लयुद्धम् । ससि-राहुशशि-राहू । करहि -कुरुतः । तहे -तस्याः । सहहि (दे.)-शोभन्ते । कुरल-कुरलाः । भमर-उल-तुलिअ-भ्रमर-कुल-तुलिताः । नं-ननु, यथा । तिमिर-डिंभ-तिमिर-डिम्भाः । खेल्लंति(दे.)-क्रीडन्ति । मिलिअ-मिलिताः ॥ तस्याः मुख-कबरीबन्धौ शोभां धरतः, यथा शशि-राहू मल्ल-युद्धम् कुरुतः । तस्याः भ्रमर-कुल-तुलिताः कुरलाः शोभन्ते, यथा तिमिर-डिम्भाः मिलिता: क्रीडन्ति ॥ उसका मुख और कबरी (ऐसी)ोभा धारण करते हैं, मानों चन्द्र और राहु मल्लयुद्ध कर रहे हो । भ्रमर समूह के साथ तुलना की जा सके ऐसी उसकी घूघराली लटे (ऐसी) शोभा दे रही है, मानों तिभिर के बच्चे मिलकर खेल रहे हों ! छाया अनुवाद 383 वृत्ति मध्य-यत्रस्याद्यस्य हिः ॥ बीच के तीन के आद्य का 'हि' । त्यादीनां मध्य-त्रयस्य यदा द्यं वचनं तस्यापभ्रंशे 'हि' इत्यादेशो भवति । 'ति' आदि (प्रत्ययों में) के बीच के तीन का जो आद्य वचन उसके (प्रत्यय का) अपभ्रंश में-'हि' ऐसा आदेश विकल्प में होता है । उदा. (१) बप्पीह', 'पिउ पिउ' भणवि कित्तिउ रुअहि हयास । तुह जलि, महु पुणु वल्लहइ बिहुँ वि न पूरिअ आस ॥ शब्दार्थ बप्पीहा--(हे) चातक । 'पिउ' 'पिउ'-पिबामि, पिनामि (पक्षे, प्रियः प्रियः) । भणवि भणिला । कित्तिउ-कियद् । रुअहि-रोदिषि । ह्यास-हताश । तुह-तव । जलि-जले । महु-मम । पुणु-पुनः । बल्लहइ-वल्लभ के, वल्लभे । बिहुँ-द्वयोः । वि-अपि । न-न । पूरिअ-पूरिता । आस-- आशा ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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