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________________ 380 अनुवाद हे सखी, तितर-बितर यदि शत्रु के (सैनिक) हुए हों तो पर मेरे पति के कारण (ही); परंतु यदि हमारा (सैन्य) तितर-बितर हुआ है तो उसके (= मेरे पति) मरने के कारण ।। अम्हहँ भ्यसाम्भ्याम् ।। 'भ्यस्' और 'आम्' सहित 'अम्हह' । अपभ्रंशे अस्मदो भ्यसा आमा च सह 'अम्हहँ' इत्यादेशो भवति । अपभ्रंश में 'अस्मद्' का, 'भ्यसू' (=पंचमी बड्डवचन का प्रत्यय) और 'आम्' (= षष्ठी बहुवचन का प्रत्यय) सहित 'अम्हह' ऐसा आदेश होता है । (जैसे कि 'भ्यसू' सहित -) उदा० (१) अम्हहँ होतउ आगदो ॥ छाया अस्मत् भवान् (अस्मत्तः) आगतः ।। हमारे पास से आया । उदा० (२) अह भग्गा अम्हहँ तणा ॥ (देखिये 379/3) 381 सुपा अम्हासु ॥ वृत्ति 'सुप्' सहित 'अम्हासु' । अपभ्रंशे अस्मदः सुपा सह 'अम्हासु' इत्यादेशो भवति ।। अपभ्रंश में 'अस्मद्' का 'सुप' सहित 'अम्हासु' ऐसा आदेश होता है। अम्हासु ठिअं॥ अस्मासु स्थितम् ॥ हममें स्थित । उदा० छाया 382 वृत्ति त्यादेराद्य-त्रयस्य वहुत्वे हि न वा ।। 'त्यादि' के आद्य तीन में से बहुवचन में विकल्प में 'हि' । त्यादीनामाद्यत्रयस्य सम्वन्धिनो बहुवर्थेषु वर्तमानस्य वचनस्यापभ्रशे 'हि: इत्यादेशो वा भवति ॥ (वर्तमानकाल, आदि के) 'ति' आदि (प्रत्यय में) के आरंभ के तीन में । बहुवचनार्थ प्रत्यय का अपभ्रंश में –'हिं ऐसा आदेश विकल्प में होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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