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________________ अपभ्रंश में 'अस्मद्' के 'सि' (= पंचमी एकवचन का प्रत्यय) और 'डस' ( = षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) सहित प्रत्येक में 'महु', 'मझु' ऐसे दो आदेश होते हैं । ('सि' सहित :-) उदा० (१) महु होतउ गदो । मझु होतउ गदो ॥ छाया मत् भवान् ( = मत्तः) गतः ।। मेरे पाससे गया । वृत्ति ङसा ॥ उस सहित :उदा० (२) महु कंतहों बे दोसडा, हेल्लि, म झंखहि आलु । देतहों हउँ पर उवरिअ जुज्झतहों करवालु ।। शब्दार्थ महु-नम । कंतहाँ-कान्तस्य । बे-दौ । दोसडा-दोषौ । हेल्लि-हे सखि । म-मा । झखहि (दे.)-वद । आलु (दे)-अनर्थकम । देंतहाँददतः । हउँ-अहम् । पर-परम्, केवलम् । उधरिअ (दे.)-अवशिष्टा । जुज्झतहों-युध्यमानस्य । करवालु-करवालः । हे सखि, (त्वम्) अनर्थकम् मा वद । मम कान्तस्स (तु) द्वौ दोषौ । ददतः (तस्य) अहम् केवलम् अवशिष्टा, युध्यमानस्य (तस्य) करवालः (अवशिष्टः)। अनुवाद (मेरे पतिकी प्रशंसा करके) हे सखी, (तु) निरर्थक मत बोल । (क्योंकि) मेरे पति में (तो) दो दोष हैं । (जैसे कि) दान देने में केवल मैं (अभी) बाकी रह गयी (हु), (और) युद्ध करते (अभी एक) तलवार (बाकी रह गयी है)। उदा० (३) जइ भग्गा पारकडा तो सहि, मज्झ प्रिएण । अह भग्गा अम्हह तणा तो ते मारिअडेण ।। शब्दार्थ जइ-यदि । भग्गा-भनाः। पारकडा-परकीयाः । तो-ततः । सहि-(हे) सखि । मझु-मम । प्रिएण-प्रियेण । अह-अथ । भग्गा-भमाः । अम्हहँ तणा-अस्माकम् सम्बन्धिनः । तो-ततः । ते-तेन । मारिअडेण-मारितेन । (हे) सखि, यदि परकीयाः (सुभटाः) भगाः, ततः (ते) मम प्रियेण (भमाः) । अथ अस्माकम् सम्बन्धिनः भमाः, ततः तेन मारितेन || छाया छाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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