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________________ उदा० (२) अंबणु शब्दार्थ छाया अनुवाद अनुवाद वृत्ति 377 वृत्ति लाइवि जे अवसु न अहिं ४० गया सुइच्छिअहि अवणु-अम्लनम् । पहिय-पथिकाः । अवश्यम् । नन । सुअहि-स्वपन्ति । जिव-य - यथा । अम्हइँ - वयम् । तिवँ तथा पहिअ पराया के.वि । जिवँ अम्हइँ तिवँ ते-वि ॥ Jain Education International लाइव -लागयित्वा । पराया - परकीयाः । उदा० (३) अम्हे देख | अम्हइँ देखs || छाया अस्मान् पश्यति । हमें देखते हैं । वचन - भेदो यथासङ्घ - निवृत्यर्थ: ( सूत्र में आदेशका ) वचन भिन्न है वह, (आदेश) क्रमश: है (ऐसी समझ) दूर करने के लिए । टाङमा मइँ | जे --ये । गया- गताः । के-वि-के अपि । अवसु ये के अपि परकीयाः पथिका: अम्लनम् लागयित्वा गताः (ते) अवश्यम् सुखासिकायाम् न स्वपन्ति । यथा वयम्, तथा ते अपि ॥ सुहच्छि अहि- सुखासिकायाम् | ते - वि-ते अपि ॥ जो कुछ पराये पथिक स्नेह का चटोरा स्वाद लगाकर गये हैं, (वे) निश्चय ही चैन से सोते नहीं होंगे । जैसे हम ( = जैसी हमारी दशा ), वैसे वे भी ( = वैसी उनकी भी दशा ) । उदा० (१) महूँ जाणिउँ, प्रिअ -विरहिअहँ अंकुवि तिह तवइ नवर टा, ङि, अम् सहित मइँ | अपभ्रंशे अस्मदः टा, ङि, अम् इत्येतैः सह 'मइँ' भवति । टा । अपभ्रंश में 'अस्मद्' का 'टा' (= तृतीया ( = सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) और 'अम्' का प्रत्यय) इनके सहित 'माँ' ऐसा आदेश टा सहित - कवि घर होइ विआलि । जिह दियरु वय - गालि || For Private & Personal Use Only इत्यादेशो एकवचनका प्रत्यय), 'ङि' (= द्वितीया एकवचन होता है । ( जैसे कि) www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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