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उदा० (२) अंबणु
शब्दार्थ
छाया
अनुवाद
अनुवाद
वृत्ति
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वृत्ति
लाइवि जे
अवसु न अहिं
४०
गया
सुइच्छिअहि
अवणु-अम्लनम् । पहिय-पथिकाः । अवश्यम् । नन । सुअहि-स्वपन्ति । जिव-य
- यथा । अम्हइँ - वयम् । तिवँ तथा
पहिअ पराया के.वि ।
जिवँ अम्हइँ तिवँ ते-वि ॥
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लाइव -लागयित्वा ।
पराया - परकीयाः ।
उदा० (३) अम्हे देख | अम्हइँ देखs ||
छाया
अस्मान् पश्यति ।
हमें देखते हैं ।
वचन - भेदो यथासङ्घ - निवृत्यर्थ:
( सूत्र में आदेशका ) वचन भिन्न है वह, (आदेश) क्रमश: है (ऐसी समझ) दूर करने के लिए ।
टाङमा मइँ |
जे --ये । गया- गताः । के-वि-के अपि ।
अवसु
ये के अपि परकीयाः पथिका: अम्लनम् लागयित्वा गताः (ते) अवश्यम् सुखासिकायाम् न स्वपन्ति । यथा वयम्, तथा ते अपि ॥
सुहच्छि अहि- सुखासिकायाम् |
ते - वि-ते अपि ॥
जो कुछ पराये पथिक स्नेह का चटोरा स्वाद लगाकर गये हैं, (वे) निश्चय ही चैन से सोते नहीं होंगे । जैसे हम ( = जैसी हमारी दशा ), वैसे वे भी ( = वैसी उनकी भी दशा ) ।
उदा० (१) महूँ जाणिउँ, प्रिअ -विरहिअहँ अंकुवि तिह तवइ
नवर
टा, ङि, अम् सहित मइँ |
अपभ्रंशे अस्मदः टा, ङि, अम् इत्येतैः सह 'मइँ'
भवति । टा ।
अपभ्रंश में 'अस्मद्' का 'टा' (= तृतीया ( = सप्तमी एकवचन का प्रत्यय) और 'अम्' का प्रत्यय) इनके सहित 'माँ' ऐसा आदेश टा सहित -
कवि घर होइ विआलि । जिह दियरु वय - गालि ||
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इत्यादेशो
एकवचनका प्रत्यय), 'ङि' (= द्वितीया एकवचन होता है । ( जैसे कि)
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