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उदा०
तुम्हासु ठिअं॥ युष्मासु स्थितम् ॥ तुम में स्थित ।
375
सावस्मदो हउँ ॥
अस्मद् का, 'सि' लगने पर, 'हउँ' । अपभ्रंशे अस्मदः सौ परे ‘हउँ' इत्यादेशो भवति ।। अपभ्रंश में 'अस्मद' का 'सि' (प्रथमा एकवचन का प्रत्यय) लगने पर, 'हउँ' ऐसा आदेश होता है । तसु हउँ कालि-जुगि दुल्टहहों ।। (देखिए 338),
जस्-शसोरम्हे अम्हइँ ॥
उदा० तसा
376
वृत्ति
जस और शस लगने पर 'अम्हे', 'अम्हइँ'। अपभ्रंशे अस्मदो जसि शसि च परे प्रत्येकम् 'अम्हे' 'अम्हइँ इत्यादेशौ भवतः । अपभ्रंश में 'अस्मद्' के, 'जस ' ( = प्रथमा बहुवचन का प्रत्यय) और 'शस ' ( = द्वितीया बहुवचन का प्रत्यय) लगने पर, प्रत्येक में 'अम्हे',
'अम्हइँ' ऐसे दो आदेश होते हैं । उदा० (१) 'अम्हे योवा रिउ वहु कायर एवं भणंति ।
मुद्धि निहालहि गयण-यलु कइ जण जोण्ह करंति ॥ शब्दार्थ
अम्हे-वयम् । थोवा-स्तोकाः । रिउ-रिसवः । बहुअ-बहवः । कायरकातराः । एवं-एवम् । भणंति-भणन्ति । मुद्धि-मुग्धे । निहालहिनिभालय, विलोकय । गयण-यलु-गगन-तलम् । कइ-कति । जण-जनाः ।
जोण्ह-ज्योत्स्नाम् । करंति-कुर्वन्ति ।। छाया 'वयम् स्तोकाः, रिपवः बहवः' एवम् कातराः भणन्ति । मुग्धे, गगन
तलम् बिलोकय । कति जनाः ज्योत्स्नाम् कुर्वन्ति ? अनुवाद 'हम कम (हैं जबकि) शत्रु (तो) बहुत (है)' ऐसा कायर कहते हैं । मुग्धा,
नभमंडल को देख-कितने लोग ज्योत्स्ना (उत्पन्न) करते हैं ?
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