SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वृत्ति 371 भिसा तुम्हेहि ॥ 'मिस ' के साथ 'तुम्हेहि । अपभ्रंशे युष्मदो भिसा सह 'तुम्हेहि' इत्यादेशो भवति ॥ अपभ्रंश में 'युष्मद्' का 'भिस् ! ( = तृतीया बहुवचन का प्रत्यय) सहित 'तुम्हेहि' ऐसा आदेश होता है ।। उदा० तुम्हे हि अम्हे हि जं किउँ दिट्ठउँ बहुअ-जणेण । तं तेवड्डउँ समर-भरु निज्जिउ एक-खणेण ॥ शब्दार्थ तुम्हे हि -युष्माभिः । अम्हे हिं-अस्माभिः । जं-यत् । किमउँ कृतम् । दिट्ठउ-दृष्टम् । बहुअ-जणेण-बहु-जनेन । तं-तत् , तदा । तेवड्डउँ-तावन्मात्र: । समर-भरु-समर-भरः । निज्जिउ-निर्जितः । एक्क खणेण-एक-क्षणेन । छाया युष्माभिः अस्माभिः यत् कृतम् , (तत्) बहु-जनेन दृष्टम् । तदा तावन् मात्रः समर-भरः एक-क्षणेन निर्जितः । अनुवाद तुमने (और) हमने जो किया, (वह) कई लोगों ने देखा । उस समय उतना वड़ा संग्राम हमने एक क्षण में जीत लिया । 372 ङसि-ङस्भ्यां तउ तुज्झ तुध्र ॥ 'सि' और 'उस ' सहित 'तउ,' 'तुज्झ', 'तुध्र' । वृत्ति अपभ्रंशे युष्मदो सि-ङस्भ्यां सह 'तउ', 'तुम', 'तुध्र' इत्येते त्रय आदेशा भवन्ति ।। अपभ्रंश में 'युष्मद्' के 'सि' (= पंचमी एकवचन का प्रत्यय और 'ङस ' (षष्ठी एकवचन का प्रत्यय) सहित 'तउ', 'तुज्झ', 'तुध्र' इस प्रकार ये तीन आदेश होते हैं । ('सि' सहित) उदा० (१) तउ होतउ आगदो । तुज्झ होतउ आगदो । तुध्र होतउ आगदो ॥ छाया त्वत् भवान् ( = त्वत्तः) आगतः ।। अनुवाद तुम्हारे पास से आया । वृत्ति ङसा ।। 'ङस' सहित -- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy