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________________ ६ वृत्ति ङिना । 'ङि' के साथ : उदा० (३) प. म. बेहि वि रण-गयहि को जय-सिरि तकेइ । केसहि लेप्पिणु जम-घरिणि भण, सुहु को थक्केइ ॥ पइँ-त्वयि । मई-मयि । बेहि -द्वयोः । वि-अपि । रण-गयहि-रणगतयोः । को-कः । जय-सिरि-जय-श्रियम् । तकेह-तर्कयति । केसहि-केशः । लेप्पिणु-गृहीत्वा । जम-घरिणि-यम गृहिणीम् । भण भण । सुहु-सुखम् । को-कः । थक्केइ (दे.)-तिष्ठति । छाया त्वयि मयि (च) द्वयोः अपि रण-गतयोः कः जय-श्रियम् तर्कयति ? भण, यम-गृहिणीम् केशेः गृहीत्वा कः सुखम् तिष्ठति ? अनुवाद तुम और मैं दोनों ही रणभूमि में उतरे अब फिर विजयश्री को (और) कौन लक्ष्य बनाये ( = बना सके) ? कहो, यमगृहिणी को चोटी से पकड़ (ने के बाद) कौन सुख से रह सके ? वृत्ति एवं तई ॥अमा ।। इसी प्रकार तइँ' (का उदाहरण दिया जा सकता हैं)। 'अम्' के साथ :उदा० (४) पइँ मेल्लंतिहे महु मरणु मइँ मेल्लंतहों तुज्झु । सारस, जसु जो वेग्गला सो-वि कृदंतहों सज्झु ॥ शब्दार्थ पइँ-त्याम् । मेल्लंतिहे (दे.)- मुञ्चन्त्याः । महु-मम । मरणु-मरणम् । मइँ-माम् । मेल्लंतहों (दे.)-मुञ्चतः । तुज्झु-तव । सारस-(हे) सारस । जसु-यस्य । जो-यः । देगला (दे.)-दूरस्थः । सो-वि-सः अपि । कृदंतहो -कृतान्तस्य । सज्झु-साध्यः ॥ त्वाम् मुञ्चन्त्याः मम मरणम् , माम् मुञ्चतः तव । (हे) सारस, यस्य यो दूरस्थः, सः अपि कृतान्तस्य साध्यः ।। अनुवाद तुम्हे छोड़कर जाते मेरा मरण (हो), (वैसे) मुझे छोड़कर जाते तुम्हारा । हे सारस, जो जिसके दूर रहे, वह कृतांत का साध्य होता है (= कृतांत का भोग बनता है)। वृत्ति एवं 'तइँ' । (इसी) प्रकार 'तइँ' (का उदाहरण दिया जा सकता है) । छाया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001465
Book TitleApbhramsa Vyakarana Hindi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1993
Total Pages262
LanguageApbhramsa, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size12 MB
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