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________________ वर्णित किया जा सकता है । हेमचन्द्राचार्य ने अन्य देवों के चरित्रलक्षणों के सामने वीतरागदेव के निर्वेद-निवृत्ति को रखकर उनकी विलक्षणता को उभारा है। जैसे कि, अन्य देव कई लोगों का कोप से निग्रह करते हैं, उन्हें वशमें लाते हैं, तो तुष्ट होकर कुछ लोगों पर अनुग्रह करते हैं । (१९.२) वीतरागदेव ऐसे रोष या तोष के भाव से अलिप्त हैं | वीतरागदेव अगर तुष्ट या प्रसन्न नहीं होते तो वे फल कैसे देंगे ऐसा प्रश्न उपस्थित होता है | तो उसका जवाब यह है कि अचेतन चिंतामणि आदि भी फल देते हैं तो रागादिभावों से मुक्त वीतरागदेव फल क्यो नहीं देंगे ? (१९.३) इस प्रकार अन्यदेव विलक्षणता से कवि वीतरागदेव की अलौकिकता स्थापित करते हैं | वीतरागदेव अन्य देवों के समान प्रवृत्तिपरक नहीं हैं तथा उनकी कोई भौतिक उपाधियाँ नहीं हैं यह बात ठोस तथ्यों से और लाक्षणिक वाक्यछटा से प्रस्तुत की गई है : न पक्षिपशुसिंहादिवाहनासीनविग्रहः । न नेत्रगात्रवक्त्रादिविकारविकृताकृतिः ।। १८.२ न शूलचापचक्रादिशस्त्रांककरपल्लवः । नांगनाकमनीयांगपरिष्वंगपरायणः ॥ न गर्हणीयचरितप्रकंपितमहाजनः । न प्रकोपप्रसादादिविडम्बितनरामरः ।। १८.४ न जगज्जनस्थेमविनाशविहितादरः । न लास्यहास्यगीतादीविप्लवोपप्लुतस्थितिः ॥ १८.५ अन्य देव, पशु या पक्षी के वाहन पर बैठते हैं (जैसा कि सरस्वती मयूरवाहना है इत्यादि), वीतरागदेव का ऐसा कोई वाहन नहीं है। दूसरे देवों की आकृति, नेत्र, मुख आदि के विकारों से युक्त होती है (जैसे कि काली बाहर नीकली हुई जिह्वायुक्त मुखवाली है), वीतरागदेव की आकृति में ऐसा कोई विकार नहीं है | और देवों के हाथमें त्रिशूल, बाण, चक्र आदि आयुध होते हैं । (जैसे कि शंकर के हाथ में त्रिशूल), वीतरागदेव कोई आयुध धारण नहीं करते ! और देव स्त्रिओं के कमनीय अंगों का आलिंगन किये हुए होते हैं (जैसे कि १८.३ १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001453
Book TitleVitragstav
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages100
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
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