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________________ अनुष्टुप् छंदना १८९ श्लोकोमां पथरायेली, प्रसाद माधुर्य अने ओज जेवा काव्यगुणोथी मघमघती, अत्यंत सरळ छतां तर्कसंगत अर्थो तथा भावोथी मढेली, अने आ 'स्तव' नुं गान करनारना हृदयमा सहज भक्तिरस प्रेरती पद्यावली ए आ 'स्तव' प्रत्येना आकर्षणनुं वास्तविक रहस्य छे । अध्यर्ध शतक अने वीतराग स्तवः तुलना ईस्वीसनना प्रथम शतकमां बौद्ध धर्मकवि मातृचेट नामे एक स्तुतिकार थइ गया । विख्यात बौद्ध कवि अश्वघोषना तेम ज सम्राट कनिष्कना वृद्ध समकालीन तरीके मनायेला आ स्तुतिकारे “ अध्यर्ध शतक" नामे एक अद्भुत रचना करी छे । जेमां तेणे १२ प्रकाशमां तथागत बुद्धनी स्तवना करी छे । निराडंबर शैली अने भक्तिनी सघनता - आ स्तोत्रमां पदे पदे जोवा मळे । पंडित सुखलालजीना कथन अनुसार स्तुतिकार मातृचेटनी स्तोत्रपद्धतिनी तेम ज तेणे पोतानां स्तोत्रोमां वर्णवेला भावोनी छाया उत्तरवर्ती अनेक कविओ तथा स्तुतिकारो पर पडी छे, जेनाथी जैन स्तुतिकारो तथा कविओ पण मुक्त नथी रह्या । आनां अनेक उदाहरणो पंडितजीए टांक्यां छे, जेमां मातृचेटना 'चतुःशतक' नामे ४०० पद्यो धरावता स्तोत्रनी पद्धतिए हरिभद्राचार्यनी विंशति-विंशिका (२० x २० = ४००) नामे रचना रचाइ होवानुं तथा मातृचेटना 'अध्यर्धशतक' नी स्पष्ट छाया हेमाचार्य कृत 'वीतराग स्तव' मां होवानुं तेमणे दर्शाव्युं छे । आनी विशद जाणकारी माटे पं. सुखलालजी कृत 'दर्शन अने चिंतन' मां प्रकाशित “स्तुतिकार मातृचेट अने तेमनुं अध्यर्धशतक" नामे तेमनो निबंध द्रष्टव्य छे । ते लेखमां तेमणे अध्यर्धशतक तथा वीतराग स्तवनां केटलांक पद्योनी तुलना पण करी देखाडी छे, तेमांथी बे-चार दाखला आपणे पण जोईए : १. अध्यर्ध. सर्वदा सर्वथा सर्वे यस्य दोषा न सन्ति ह । सर्वे सर्वाभिसारेण यत्र चावस्थिता गुणाः तमेव शरणं गन्तुं तं स्तोतुं तमुपासितुम् । Jain Education International ३ For Private & Personal Use Only 11911 www.jainelibrary.org
SR No.001453
Book TitleVitragstav
Original Sutra AuthorHemchandracharya
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages100
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Worship
File Size5 MB
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