________________
पण श्रीहेमचन्द्राचार्यने लाग्युं हतुं के संपूर्ण वीतराग सर्वज्ञ तीर्थंकर ज धर्मप्रवर्तक होइ शके, अमे तो ते तीर्थंकरनी आज्ञाए चाली तेमना परमार्थमार्ग- प्रकाशन करवा प्रयत्न करनारा । वीतराग मार्गनो परमार्थ प्रकाशवारूप लोकानुग्रह श्री हेमचन्द्राचार्ये कर्यो । तेम करवानी जरूर हती | वीतरागमार्ग प्रति विमुखता अने अन्य मार्ग तरफथी विषमता, ईर्ष्या आदि शरू थइ चूक्यां हतां । आवी विषमतामां वीतरागमार्ग भणी लोकोने वाळवा लोकोपकारनी तथा ते मार्गना रक्षणनी तेमने जरुर जणाइ । अमारुं गमे तेम थाओ, आ मार्गनुं रक्षण थर्बु जोइए, ए प्रकारे तेमणे स्वार्पण कर्यु । पण आम तेवा ज करी शके | तेवा भाग्यवान, माहात्म्यवान, क्षयोपशमवान ज करी शके।
जुदां जुदां दर्शनोनो यथावत् तोल करी अमुक दर्शन संपूर्ण सत्यस्वरूप छे एवो निर्धार करी शके तेवा पुरुष लोकानुग्रह, परमार्थ प्रकाश, आत्मार्पण करी शके ।"१
वीतराग स्तव' ए आवा सत्पुरुषे, पोताना जीवनना उत्तरार्धमा, राजा कुमारपाळनी विनंतिथी रचेली एक सुमधुर संस्कृत रचना छे । कुमारपाळना अनुगामी राजा अजयपालना मंत्री यशःपाले 'वीतराग स्तव'ना वीस प्रकाशोने वीस दिव्य गुलिका (गोळी)ओ गणावी छे । (मोहराजपराजय नाटक, कर्ताः यशःपाल, पृ. १२३, गा.ओ.सी. वडोदरा) । प्रबंधोमां मळता वर्णन प्रमाणे राजा कुमारपाळ आ २० प्रकाश तथा योगशास्त्रना १२ प्रकाश - ए ३२ प्रकाशोनो नित्य प्रातः स्वाध्याय करवा द्वारा आध्यात्मिक दंतधावन कर्या पछी ज बाह्य दंतशुद्धि करता।
जैन संघमां आ 'वीतराग स्तव'- अनेरुं आकर्षण सदाय रह्यु छ । सैकाओथी तेनुं अध्ययन तथा पठन जैन साधु-साध्वीओ करतां रह्यां छे, एटलुं ज नहि, पण श्रावक-श्राविकाओनो पण मोटो वर्ग आ 'स्तव' भणतो रहे छे | आ 'स्तव'ना आवा आकर्षण पाछळनु रहस्य, ते हेमचन्द्राचार्यनी रचना छे ते तो खलं ज, परंतु ३२ अक्षरोना १. वीतराग स्तव : सविवेचन-काव्यानुवाद, कर्ता : डॉ. भगवानदास म. महेता. ई : १९६५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org