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________________ अधिक वृत्तान्त श्री हीरसौभाग्य वगेरे थकी जाणी लेवो. संवत् १६४८ मां रचायली पट्टावलीमां पण हीरसौभाग्यनो, एक वरिष्ठ अने वृद्ध उपाध्यायजी भगवंत द्वारा, उल्लेख थाय अने हवालो अपाय ते सूचवे छे के आ महाकाव्य १६४८मां तो घणुं प्रचलित अने लोकप्रिय बनी गयुं हशे. जो के, (भारत ना) अन्यान्य अनेक ग्रन्थभंडारोमा तपास करवा छतां हीरसौभाग्यनी सांपडती अति अल्पसंख्यक प्रतिओ जोतां पाछळथी आ महाकाव्यनु अध्ययन घटी गयुं हशे, तेम मानी शकाय. परंतु, तेनुं कारण पाछळना सैकाओमां संस्कृतनुं घटी गयेखें अध्ययन-अध्यापन ज गणवं जोइए, नहि के आ काव्य के तेना कथानायकनी लोकप्रियतानी ऊणप. परंतु, छेल्लां थोडां वर्षोमां आ काव्य, पठन-पाठन पुन: विपुल प्रमाणमां थतुं जोवा मळे छे. रघुवंश, किरात, माघ, जेवां महाकाव्यो, व्याकरणना तथा संस्कृतना बोधने दृढ/स्फुट करवा माटे जाणवां जोइए तेवी एक परंपरा आपणे त्यां छे, अने वर्षोथी ते प्रमाणे थतुं पण आव्युं छे. पण, निर्णयसागर प्रेसे सर्वप्रथम हीरसौभाग्य तथा विजयप्रशस्ति वगेरे काव्यो- मुद्रण कर्यु, ते पछी विद्वद्वर्गने अहेसास थवा लाग्यो के पंचमहाकाव्योनी हरोळमां के बराबरीमां ऊभा रही शके तेवां आ काव्यो पण छे, तो तेमनुं अध्ययन संघमां थाय तो शुं खोटुं ? आ रीते धीमे-धीमे आ काव्योनुं अध्ययन संघमां प्रचलित थतुं गयुं, जे आजे तो व्यापक अने विपुल बन्युं छे. हीरसौभाग्यनो अनुवाद पण थयो छे, अने तेनुं पुनर्मुद्रण पण थई चूक्युं छे. हीरसुन्दर : हीरसौभाग्यनो पूर्वावतार ____ 'हीरसौभाग्य, ए, खरी रीते, ए महाकाव्यनो बीजो अवतार छे. आ काव्यनो पहेलो अवतार तो छे. 'हीरसुन्दर' महाकाव्य. एम समजाय छे के श्रीदेवविमलगणिए, आ काव्य रचनानो उपक्रम सर्वप्रथम हाथ धर्यो हशे त्यारे तेमणे आ काव्यने 'हीरसुन्दर काव्य' लेखे रचवानुं विचार्यु हशे. आनुं प्रमाण एटले : (अ) 'हीरसौभाग्य'नी हीरसुन्दर काव्यना नामे उपलब्ध थती विभिन्न प्रतिओ, तेमज, (ब) 'हीरसुन्दर'ना रूपमा कर्ताए करवा धारेला काव्यना काचा आलेख(Draft)नी हीरसौभाग्य करतां भिन्न पाठ धरावती-प्रतिओ. अलबत, आ (अ) अने (ब) बन्ने विभागनी जूज प्रतिओ ज मळे छे; तेमांये (ब) विभागनी उपलब्ध प्रतिओ एकाद सर्ग जेटला अंशने ज समजावनारी छे. परंतु, ते प्रतो उपरथी एटलुं स्पष्ट थई शके छे के कर्ताए पहेलां 'हीरसुन्दर' नामे काव्य सर्जवानुं विचार्यु हशे, अने पाछळथी 'सोम सौभाग्य'ना अनकरणरूपे होय. नाममां वध सौन्दर्य लाववानी अभिलाषाथी होय के क कर्त्तानां माता 'सौभाग्यदे'नुं नाम अमर करवानी भावनाथी होय-गमे ते कारणे कर्ताए नाममां परिवर्तन कर्यु छे; एटलुं ज नहि, पण (ब) विभागनी प्रतिओ तपासतां, तेमणे काव्यना पद्योनी वाचनामां पण महदंशे शाब्दिकपरिवर्तन कर्यु छे. 'हीरसुन्दर' काव्यनी जे प्रतिओ अत्यारे अमारी समक्ष छे, ते आ प्रमाणे छ : १. शेठ डोसाभाई अभेचंद पेढी-भावनगर जैन तपा संघना ज्ञानभंडारनी प्रति. २. श्री जैन आत्मानंद सभा-भावनगरना भंडारनी प्रति. ३. ईडर-जैन संघना ज्ञानभंडारनी प्रति. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001449
Book TitleHirsundaramahakavyam Part 2
Original Sutra AuthorDevvimal Gani
AuthorRatnakirtivijay
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year2005
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Biography
File Size22 MB
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