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________________ प्रस्तावना (प्रथम भागनी) जगद्गुरु अने 'हीरसौभाग्य' जगद्गुरु श्रीहीरविजयसूरीश्वरजी महाराज, ए १६मा शतकना एक प्रभावक धर्मपुरुष अने प्रतिभासम्पन्न जैनाचार्य छे. तेओना अहिंसापरायण, करुणा छलकता, अने विश्वकल्याणनी उदात्त भावनाथी मघमघता जीवन अने जीवनकार्यो विशे तेमनी विद्यमानतामां अने त्यार पछी आज सुधीमां अनेक ग्रन्थो रचाया छे. जैन संघना अने विशेषे तपगच्छना इतिहासमां आवी प्रशस्ति भाग्ये ज कोई गच्छनायकने सांपडी छे. तेमना जीवननो ऊंडाणथी अभ्यास करतां अने तेमना विशे जे लखायुं छे तेनुं अवलोकन करतां सहेजे समजाय छे के जगद्गुरु साचा स्वरूपमां लोकवल्लभ युगपुरुष हता. तेओनो सिद्धान्तनिष्ठा, विद्याध्ययन, तपश्चर्या, चरित्ररमणता, प्रतिभा, हृदयनी विशाळता, गच्छनी तथा शासननी धुरा, संचालन करवानी निपुणता, स्वपक्ष अने परपक्षनो सुमेळ तथा संकलन साधवानी कुनेह, गंभीरता, समय आवे गच्छपति तरीके कडक अथवा मक्कम रीते काम लेवानी दृढता वगेरे विशिष्टताओ परत्वे तेमना विरोधीओमां पण बे मत नहोता. बल्के, आ बधी विशिष्टताओने लीधे ज तेओश्री स्वपरपक्षमां तेमज भक्तो अने विरोधीओमां पण मान्य अने आदरपात्र बनी गया हता. तेमना विशे रचायेली कतिओमांश्री जगदगरुकाव्य.. श्रीहीरविजयसरि रास जेवी प्रगल्भ रचनाओ उपरान्त हीरसंरि स्वाध्याय, अनेक सज्झायो, सलोका, मांडवणा (वहाण), प्रबन्ध, वगेरे विविध प्रकारनी अढळक रचनाओनो समावेश थाय छे. आ रचनाओ जोतां जगद्गुरुनी लोकवल्लभतानी प्रतीति अनायास थई जाय छे. .. आ बधी रचनाओमां शिरमोर समी रचना एटले-हीरसौभाग्य महाकाव्य. श्री जगद्गुरुना गुरुभगवंत तपगच्छनायक श्री विजयदानसूरीश्वरजी दादानी शिष्यपरंपरामां ऊतरी आवेल पंडितश्री सिंहविमलगणिना शिष्य पंडितश्री देवविमलगणिए जगद्गुरुनी हयातीमां ज रचेल आ महाकाव्य प्राचीन संस्कृत महाकाव्योनी परंपराने अनुसरतुं एक समृद्ध अने प्रतिभासंपन्न महाकाव्य छे. महाकाव्यनां तमाम लक्षणो धरावतुं, सत्तर सर्गोमां अने टीका सहित आशरे १० हजार श्लोकोमां पथराएलुं अने वळी स्वोपज्ञवृत्तियुक्त आ महाकाव्य माघ अने नैषध जेवां प्राचीन महाकाव्योनी हरोळमां निःशंक ऊभुं रही शके तेम छे; तो आ महाकाव्यना प्रणेता श्रीदेवविमलगणिनी आ काव्यमां ऊपसती कविप्रतिभा तेओने पूर्वना प्रतिभासम्पन्न महाकविओ तेमज टीकाकारोनी पंक्तिमां मूकी आपे छे. हीरसौभाग्य महाकाव्य तेना काव्यनायक महापुरुषना जेवू ज सौभाग्यशाळी जणाय छे. आ महाकाव्य जेवू रचायुं तेवू लोकप्रिय अने लोकप्रसिद्ध बनी गयुं हतुं. महोपाध्याय श्री धर्मसागरजीगणिए पोतानी रचना-तपगच्छपट्टावली-नी स्वोपज्ञवृत्तिमां श्री हीरविजयसूरिनुं संक्षिप्त चरित्रवर्णन करतां नोंध्यु छे के 'तद्व्यतिकरो विस्तरतः श्रीहीरसौभाग्यकाव्यादिभ्योऽवसेयः' अर्थात्, श्री जगद्गुरुना चरित्रनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001449
Book TitleHirsundaramahakavyam Part 2
Original Sutra AuthorDevvimal Gani
AuthorRatnakirtivijay
PublisherJain Granth Prakashan Samiti
Publication Year2005
Total Pages426
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Biography
File Size22 MB
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