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न्यायसंग्रह (हिन्दी विवरण )
से 'ष' का 'स' हुआ होने से वह कृत कहा जाता है । अतः 'नाम्यन्तस्था' - २ / ३ / १५ से 'स' का 'ष' होगा । ऐसे सन् परक णि होने पर 'सिषेकयिषति' में भी 'स' का 'ष' होगा। प्रेरक न हो ऐसे अर्थात् केवल 'सेक्' धातु से 'सन्' होने पर, 'ष' होने की प्राप्ति है किन्तु 'णिस्तोरेवास्वदस्विदसहः षणि' २/३/३७ से नियम होने से 'सिसेकिषते' में 'स' का 'ष' नहीं होगा ।
यदि धातु षोपदेश न हो तो, 'स' अकृत होने से षत्व की प्राप्ति का ही अभाव होने से 'असिसेकत्, सिसेकयिषति' रूप ही होता है । 'सेकते' इत्यादि रूप षोपदेश और अषोपदेश, दोनों प्रकार के धातु से समान ही होते हैं । ॥ ६६ ॥
'चिक्कण् व्यथने' । 'चिक्कयति' । उणादि का 'अण' प्रत्यय होने पर 'चिक्कणः ' शब्द होता है और 'अस' प्रत्यय होने पर 'चिक्कसः ' शब्द 'यवक्षोदः' (जव का आटा) अर्थ में होता है | ॥६७॥
ख अन्तवाले तीन धातु हैं । 'चखु गतौ' धातु उदित् होने से 'न' का आगम होने पर ‘चङ्खति' । ‘कित्' प्रत्यय होने पर 'न' लोप नहीं होगा, अत: 'चङ्ख्यते, चङ्खित:' । 'चङ्खा' शब्द में 'क्टो गुरो:'-५/३/१०६ से 'अ' होता है | ॥ ६८ ॥
'खक्ख हसने' । 'खक्खति, खक्खितः ' । 'खक्खा' शब्द में भी 'क्तेटो गुरो:'-५/३/१०६ से 'अ' प्रत्यय होता है | ॥ ६९ ॥
'लिखत् अक्षरविन्यासे' । यह धातु कुटादि है, अतः 'तृज्' इत्यादि प्रत्यय होने पर ' ङित्त्व' के कारण गुण नहीं होगा । अतः 'लिखिता, लिखितुम्, लिखनीयम्' होगा। जबकि कुटादि से भिन्न 'लिख' धातु के 'लेखिता, लेखितुम्, लेखनीयम्' इत्यादि शब्द होते हैं । 'लिखति' इत्यादि रूप दोनों प्रकार के धातु से समान ही होते हैं ।
कुछेक वैयाकरण 'कड, स्फर, स्फल' धातुओं को भी 'कुटादि' मानते हैं, अत: उनके उपान्त्य 'अ' की वृद्धि नहीं होती है । उदा. 'कडकः, स्फरकः, स्फलकः' इत्यादि । ये धातु यहाँ नहीं बताये गये हैं, क्योंकि 'अच्' प्रत्यय होने पर 'कड' इत्यादि शब्द होते हैं, उनसे स्वार्थ में 'क' प्रत्यय करके 'कडकः' इत्यादि शब्दों की सिद्धि हो सकती है | ॥७०॥
अन्तवाले पांच धातु हैं । 'घरघ हसने', घग्घति, घग्घित:' । 'घग्घा' शब्द में 'क्तेटो गुरो:'५/३/१०६ से 'अ' प्रत्यय होता है । । ७१॥
'दघ, सघ, तिघ, चषघट् हिंसायाम्' । 'दघ्नोति' । 'घञ्' होने पर 'दाघः, निदाघः' शब्द होते 1119211
धातु को ही कुछेक उदित् कहते
स्वो. न्या. -: 'सेकृङ्' धातु को ही कुछेक षोपदेश मानते हैं । सिद्धहेम के 'चुक्कण् व्यथने' के स्थान पर कौशिक नामक वैयाकरण 'चिक्कण्' पाठ देते हैं । 'चख गतौ' हैं । 'कक्ख हसने' धातु को ही कुछेक 'खक्ख' मानते हैं । 'लिखत्' हैं । 'गग्ध हसने' धातु को ही कुछेक 'घग्घ' के रूप में मानते हैं। जबकि 'षघट्' धातु को कुछेक अषोपदेश मानते हैं ।
धातु को कुछेक 'कुटादि' मानते
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