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________________ 355 चतुर्थ वक्षस्कार (न्यायसूत्र क्र. १४१) शब्द सिद्ध होते हैं ॥११॥ _ 'कर्क ' धातु का 'कर्कति' रूप होता है और उससे उणादि के 'दिव्यवि-' (उणा-१४२) से 'अट' प्रत्यय होने पर 'कर्कटः' शब्द होता है, उससे 'जातेरयान्त' - २/४/५४ से 'ङी' प्रत्यय होने पर 'कर्कटी' और उणादि के 'कर्के'-(उणा-८१३) सूत्र से 'आरु' प्रत्यय होने पर 'ककारु:' शब्द होता है । ॥१२॥ स्वो.न्या : 'चिरिणोति हन्ति पित्तं' (पित्त को जो दूर करता है ) · चिभिटी' (ककडी/ खुरबुजा) न्या. सि. :- 'तय॑न्ते प्रमितिविषयीक्रियन्ते पदार्था अनेन इति तर्क :' । 'तर्क' अर्थात् जिस से पदार्थों को प्रमिति प्रमाण का विषय बनाया जाय अर्थात् पदार्थ की सिद्धि की जाय । ३. 'सिक सेचने' धातु का 'सेकति' रूप होता है और उणादि के 'पृषिरञ्जि'- (उणा-२०८) सूत्र से कित् ‘अत्' प्रत्यय होने पर 'सिकता' शब्द होता है ॥१३॥ ४. मर्क संप्रच्छने' धातु का 'मर्कति' रूप होता है । उणादि के 'दिव्यवि' -( उणा-१४२) से 'अट' प्रत्यय होने पर 'नर्कट:' और 'कैरव'-( उणा-५१९) सूत्र से 'अव' प्रत्यय होकर निपातन होने से ‘ाकवः' शब्द होता है और उसका अर्थ 'केशरञ्जनः' होता है। न्या.गि :. 'कर्कट' अर्थात् कपिल/भूखरा रंग और 'कुलीर' का अर्थ केकडा (कर्क) होता है । कर्कटी अर्थात् ककड़ी और 'कर्कारुः' अर्थात छोटा खरबुजा होता है। ५. सति भ्रमणे' धातु का 'चङ्कते' रूप होता है । उणादि के 'वाश्यसि' - ( उणा- ४२३) सूत्र से 'उर' प्रत्यय होने पर 'चङ्करः ' शब्द होता है और उसका अर्थ 'रथ' होता है । ॥ १५ । ६. 'मकि गतौ' धातु का 'मकते' रूप होता है । उणादि के 'ककिमकि'-( उणा-२४५) से यय होने पर 'मकन्द' शब्द होता है, वह एक राजा का नाम है और उससे 'माकन्दी पः' (नगरी का नाम) बनता है । ॥१६॥ खान्त धातु 'रिखि' और 'लिखि' समानार्थक है । 'रेखति चित्रकृत्' । अर्थात् चित्रकार रेखांकन करता है । 'भिदादयः' ५/३/१०८ से 'अङ्' प्रत्यय होने पर, निपातन से 'रेखा' शब्द बनता है । ॥१७॥ गकारान्त धातु-: 'कगे मिथः संप्रहारे' धातु से 'बहुलमेतन्निदर्शनम्' वचन अनुसार चुरादिभ्यो णिच् ' ३/४/१७ से स्वार्थ में 'णिच्' होगा बाद में 'ख्णम्' प्रत्यय होने पर 'कम्' का 'अ' कगेवनूजनैजष् क्नस् रञ्जः' ४/२/२५ से विकल्प से दीर्घ होने पर 'कागकागं, कगंकगं' शब्द सिद्ध होंगे और उसका अर्थ 'पुनः पुनः बार बार प्रहार करके' होता है। यह धातु मौन अर्थ में है, ऐसा कुछेक कहते हैं, अत: 'कगति' का अर्थ 'वह नहीं बोलता है । (वह मौन धारण करता है।)' होता है। १. मार्कव आर्थात् माका/भृङ्गराज को गुजराती भाषा में 'भांगरो' कहा जाता है वह संस्कृत के भृङ्गराजः शब्द से आया है। मराठी भाषा मे उसे माका कहा जाता है, वह संस्कृत के 'मार्कवः' शब्द से आया है ! इसका इस्तेमाल महेंदी की तरह बाल को रंगने के लिए किना जाता है । 'मार्कवो भृङ्गराजः स्यात्' (अमरकोश पं. ९५१) 'अन्द' प्रत्यय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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