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न्यायसंग्रह हिन्दी विवरण) यही अनिष्टापत्ति दूर करने के लिए उपर्युक्त स्पष्टीकरण की अधिक स्पष्टता करते हुए कहा है कि जिस प्रत्यय को संज्ञा की गई हो वह प्रत्यय साक्षात् उद्देश्य बनता है और ऐसे स्थल पर प्रत्ययवाचक पद से तदन्त का ग्रहण नहीं होगा, ऐसा इस न्याय का अर्थ समझना चाहिए । जहाँ प्रत्यय की संज्ञा स्वयं उद्देश्य बनती हो, वहाँ तदन्त का ग्रहण हो सकता है ।
इस दृष्टि से कृदन्त और तद्धितान्त को 'नाम' संज्ञा प्राप्त करने में कोई आपत्ति/बाधा नहीं आयेगी।
संज्ञा का उद्देश्य, प्रत्ययत्व व्याप्य धर्मयुक्त हो, वहाँ भी प्रत्ययवाचक पद से तदन्त का ग्रहण नहीं होगा । यहाँ कृत् के उद्देश्यस्वरूप 'तुम्' तक के प्रत्ययों में प्रत्ययत्व व्याप्य धर्म है । 'त्यादि' भी प्रत्यय है, अत एव 'त्यादि' यहाँ उद्देश्य का प्रयोजक बनता है, अप्रयोजक नहीं । परिणामतः 'त्यादिभिन्न' 'तुम्' तक के प्रत्यय ‘कृत्' कहे जाते हैं।
बृहन्यास में इस न्याय के बारे में कहा है कि संज्ञाधिकार में 'तदन्त' का ग्रहण नहीं होता है, अतः 'आतुमोऽत्यादिः कृत्' ५/१/१ सूत्र में त्यादि प्रत्ययों के वर्जन से तदन्त का वर्जन नहीं करना । अब 'अधातुविभक्तिवाक्यमर्थवन्नाम' १/१/२७ से केवल 'कृत्' और 'तद्धित' प्रत्ययों को ही 'नाम' संज्ञा हो सकेगी, किन्तु कृदन्त और तद्धितान्त को नाम संज्ञा नहीं होगी । परिणामतः 'छिद्, भिद्' स्वरूप 'क्विबन्त' की 'नाम' संज्ञा नहीं होगी, क्यों कि 'अधातु' से उसका निषेध हुआ है। 'प्रत्ययलोपे प्रत्ययलक्षणम्' न्याय से भी यहाँ 'नाम' संज्ञा नहीं होगी क्यों कि प्रत्ययनिमित्तक जो कार्य होता है, वही कार्य प्रत्यय का लोप होने पर भी होता है, किन्तु उसी प्रत्यय से सम्बन्धित/ प्रत्यय का कार्य हो वही कदापि नहीं होता है क्यों कि कार्यि के स्वरूप में कदापि 'असत्' का स्वीकार नहीं होता है।
कृत् और तद्धित की ही नाम संज्ञा होने से 'औपगवः' स्थल पर षष्ठी से ऐकार्य नहीं होने से लोप नहीं होगा।
इसी शंका का समाधान करते हुए कहा गया है कि यदि संज्ञी प्रत्यय हो तो 'तदन्त' की संज्ञा नहीं होती है, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि प्रत्यय की जो संज्ञा की गई हो वह कृत्, तद्धित' आदि जिसके अन्त में हो ऐसे कृदन्त तद्धितान्त इत्यादि को दूसरी 'नाम' संज्ञा न हो । यह बात ऊपर बतायी गई है।
__ 'अधातुविभक्तिवाक्यमर्थवन्नाम' १/१/२७ में विभक्ति को छोड़कर अन्य शेष प्रत्यय जिनके अन्त में हो, ऐसे शब्दों को 'नाम' संज्ञा होती है, ऐसा बताया गया है और बृहद्वृत्ति में कहा है कि 'विभक्त्यन्त' के वर्जन से 'आप' इत्यादि प्रत्ययान्त शब्दों को भी 'नाम' संज्ञा होती ही है और अनुक्रम से तद्धितान्त और कृदन्त के उदाहरण भी दिये गये हैं।
बृहन्न्यास में भी कहा है कि जिन्होंने [पाणिनि इत्यादि ने] सामान्यतया प्रत्यय का वर्जन किया है, उसके लिए 'आप' 'कृत्' 'तद्धित' इत्यादि प्रत्ययान्त शब्दों को नाम (प्रातिपदिक) संज्ञा
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