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________________ न्यायसंग्रह ( हिन्दी विवरण) इस प्रकार पूर्वकृत न्यायवृत्ति का कहीं कहीं आधार ले के प्रभु श्रीहेमचन्द्राचार्यजी ने इकट्ठे किये हुए सत्तावन न्यायों की बृहवृत्ति पूर्ण हुई। ___तपागच्छाचार्य श्री सोमसुंदरसूरिजी महाराज के सकल शिष्यों में अग्रणी गच्छेन्द्र आचार्य श्री रत्नशखरसूरीश्वरजी गुरु के प्रवर्तमान सांनिध्य में उनके शिष्य श्रीहेमहंसगणिविरचित 'न्यायार्थमञ्जुषिका' नामक बृहवृत्ति का प्रथम वक्षस्कारक संपूर्णता को प्राप्त करता है। इति कलिकालसर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यैर्विरचित श्री सिद्धहेमशब्दानुशासनस्य स्वोपज्ञबृहद्वृत्त्यन्ते तैरेव समुच्चितानां सप्तपञ्चाशतः न्यायानां प्रथम-वक्षस्कारस्य पण्डित श्रीहेमहंसगणिकृतस्वोपज्ञन्यायार्थमञ्जूषा नाम बृहद्वत्तेश्च स्वोपजन्यासस्य च ___ तपागच्छाधिराज-शासनसम्राट् आचार्य श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वराणां पट्टालङ्कार आचार्य श्रीविजयलावण्यसूरीश्वरैः संदृब्धं न्यायार्थसिन्धुं च तरङ्गं च क्वचिद् क्वचिदुपजीव्य शासनसम्राट् आचार्य श्रीविजयनेमि-विज्ञान-कस्तूर-यशोभद्र-शुभङ्करसूरिणां पट्टधर आचार्य श्रीविजयसूर्योदयसूरीश्वराणां शिष्य मुनि नन्दिघोषविजयकृतः सविवरणं हिन्दीभाषानुवादः समाप्तिमगात् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001446
Book TitleNyayasangrah
Original Sutra AuthorHemhans Gani
AuthorNandighoshvijay
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages470
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Grammar, & Nyay
File Size11 MB
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