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________________ प्रस्तावना उसका कीर्तन करने के उद्देश्य से ही यह ग्रन्थ रचा है। इस कारण से इस ग्रन्थ में अपभ्रंश कवियों द्वारा प्रादुर्भूत तथा सम्मानित छंद पज्झटिका एवं अलिल्लह का ही अधिक उपयोग है । पर पथ्यकारी भोजन में भी नमक उसे सुस्वादु बनाने के लिए जिस प्रकार से आवश्यक होता है उसी प्रकार से अन्य छन्दों को काव्य रोचक बनाने के लिए आवश्यक मानकर कवि ने अपने काव्य में उनका यत्किंचित उपयोग किया है । पा. च. में जो छंद जिन कडवकों में प्रयुक्त हुआ है उनकी संख्या निम्नानुसार है। (अ) मात्रावृत्तछंद का नाम कडवकों की संख्या (i) पज्झटिका २४० (ii) अलिल्लह (iii ) पादाकुलक (iv ) मधुभार (v) स्त्रग्विणी (vi) दीपक (vii) पादाकुलक+अलिल्लह .... و سر ه ه ه ه [आ ] वर्णवृत्त (i) सोमराजी (ii) प्रामाणिका (iii) समानिका ه ه ه ا م अन्य (इ) (i) गद्य ( ii) अज्ञात س به योग ३१५ पज्झटिका, अलिलह तथा पादाकुलक छंदों के उपयोग के विषय में कवि की एक विशेष प्रवृत्ति दिखाई देती है। जहाँ भी उसने इन तीनों छन्दों में से किसी एक का प्रधान रूप से उपयोग किया है प्रायः वहाँ उसने अन्य दो छंदों की कुछ पंक्तियाँ डाली हैं । कुछ कडवक तो ऐसे भी हैं जहाँ पज्झटिका और अलिल्लह की पंक्तियों की संख्या समान हैं। नीचे जिस कडवक में जिस छंद का उपयोग हुआ है तथा उस कडवक में अपवाद स्वरूप अन्य छंद या छंदों की जो पंक्तियां आई है उनका विवरण तालिका रूप से दिया जा रहा है, साथ में छंदों के लक्षण भी दिए जा रहे हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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