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________________ शब्दावलि कवि का यथार्थ आशय है कि उसका कोमल कर करिणि के कर के समान मनोहर था । (४) परमेसर जउणाणइतीरि । अत्थाहि अगाहि अनंत गीरि पुरु अत्थि एक्कु ..... 1 इस वाक्य में अथाह, अगाह तथा अणंतणीरि तीर के विशेषण हो गये हैं जब कि वे जउणाणइ के विशेषण होना चाहिये । ६५ दूसरा दोष जो कवि की भाषाका दिखाई देता है वह यह कि उसमें कविने अनेक स्थलों पर संख्यावाची विशेषणों के उपयोग में समानता नहीं वरती है यथा ( १ ) पढमो जि संक आकंखदोसु ( ३.५.१ ) यहाँ कवि अतिचारों का नाम दे रहा है। उनमें प्रथम शंका और दूसरा आकांक्षा । किन्तु कविने ' संक' के साथ तो पढम का उपयोग किया किन्तु ' आकंख' के साथ ' दुज्जउ' का उपयोग करना उसने जरूरी नहीं माना। इसके आगे सब अतिचारों के साथ संख्यावाची विशेषण जोड़े गये हैं (दे. ३. ५. २. तथा ३. ) । (२) तीसरी संधिके नौवें कडवक में कविने अणुव्रतों का स्वरूप समझाया है । पहले उसने अहिंसा और सत्यत्रत का उल्लेख किया है पर इनके साथ कोई संख्यावाची विशेषण नहीं जोड़े किन्तु आगे जब अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह की चर्चा की तब उनके साथ क्रमशः तिज्जउ, चउत्थउ तथा पंचमउ संख्यावाची विशेषणों का उपयोग किया है । ( ३ ) सत्रहवीं सन्धि के बीसवें कडवक कविने नौ बलदेवों के नाम गिनाये हैं उनमें से प्रथम के साथ और आठवें तथा नौवें के नामों के साथ संख्यावाची विशेषण प्रयुक्त नहीं हैं अन्यों के साथ प्रयुक्त हैं । ( ४ ) सत्रहवीं सन्धि के इक्कीसवें कडवक में नारायगों के नाम दिये हैं। इनमें से प्रथम चार के तथा छठवें के साथ संख्यावाची विशेषण नहीं तथा शेष के साथ प्रयुक्त हैं । पा. च. की शब्दावलि : अपभ्रंश भाषा की रूढ़ी के अनुसार इस ग्रन्थ की भाषा में तत्सम तद्भव तथा देशी इन तीनों प्रकार के शब्दों । पूरे ग्रन्थ में समस्त शब्दों की संख्या सबसे अधिक चार सौ ( ४०० ) कियांए हैं तद्भव शब्दों की संख्या लगभग । क्रियाओं को छोड़कर अट्ठारह सौ हुई । इस 1 का प्रयोग पाया जाता है। इन तीन वर्गों में से तद्भव वर्ग के मूल शब्दों की संख्या लगभग सत्ताइस सौ है जिनमें से लगभग तत्सम शब्द ३८० तथा देशी शब्द एक सौ तीस हैं। अतः सामाग्री के अनुसार तद्भव शब्द ७८ प्रतिशत, सत्सम शब्द १६ प्रतिशत तथा देशी शब्द ६ प्रतिशत हैं । तद्भव शब्दों में कुछ शब्द ऐसे भी हैं जिनमें केवल न् के स्थान पर ण हुआ है । यदि इस परिवर्तन को गणना में न लें तो तत्सम शब्दों की संख्या १४० से बढ़ जाती है और इस स्थिति में उनका प्रतिशत २३ हो जाता है। इसी प्रकार से यदि स औरश के भेद को न माना जाय तो तत्सम शब्दों की संख्या ६० से बढ़कर उनका प्रतिशत २५ प्रतिशत हो जाता है । तद्भव शब्दों में उन शब्दों को भी सम्मिलित किया गया है जिन के अन्तिम दीर्घस्वर अपभ्रंश भाषा की प्रवृत्ति के अनुसार हस्व कर दिये गये हैं । जैसे कि गुहा का गुह, देवी का देवि आदि । ऐसे शब्द लगभग ४२ हैं । इनको तत्सम शब्दों की संख्या में जोड़ने से तत्सम शब्दों की संख्या २७ प्रतिशत हो जाती है । क्रियाओं की ४०० संख्या में लगभग ५० देशी हैं; शेष तद्भव । तत्सम क्रियाएँ ग्रन्थ में उपयोग में नहीं आई हैं। चूंकि अपभ्रंश भाषा में हलन्त क्रियाओं को स्वरान्त बना लिया जाता है । अतः ऐसी क्रियाओं की गणना तद्भव वर्ग में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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