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________________ विज्जु शब्दकोश वार-त स (= दिन) ८.५.९; ८.८.६. वितर-व्यंतर ( = देवोंका एक भेद ) ८.१७.३;८.२०.३ वार-द्वार २.१३.३,१५.७.५,१६.१३.१० १६.८.१%,१६.८.४ वारण-त स (=प्रहारसे बचनेके लिए विंद-वृंद २.१.६,४.१.५:११.१.५. छाती पर लगाया गया तवा) १२.१३.४,१२.१३.७. विभिय-विस्मित १४.११.१०. वारण-त स (= गज) ११.११.७. विक्कय-विक्रम १०.३.१०,१७.९.६; वारण-(=निवारक) ६.११.२, १४.१.२. विकिण-वि + क्री ( = बेचना) वारि-त स वारि (= पानी ) ४.१.९ वर्त० तृ. ब. विकिणंति ३.१०.५. /विक्खर-वि+कृ (= विखरना) वारुण-त स (= वारुणास्त्र) १२.७.२ प्रे० भू. कृ. विक्खारिय ३.१४.९. -वरुण ११.७.११. विगय–विगत (= रहित) ३.१३.६,५.८.६. वाल-पाल ८.२३.८ ११.१३.११२.३.११७.२.५ वावल्ल-(= एक शस्त्र भाला ?) विग्ध-व्याघ्र ७.९.९. १०.६.३,११.३.९.११.७.१२,११.१२.१२ विग्घ-विघ्न १.३.२,३.२.९ वावि-वापी १०.१३.४,१५.७.२. विचिंतर-विचित्र १६.८.१. -वाइ १.६.५. विचित्त-विचित्र (=अनोखा ) १.६.९,६.१०.६,१४.११.७. वास-त स (= निवास) १.८.९;३.६.४;३.७.५ -विचित्तय ६.११.१५ वास-त स (= सुगंधि द्रव्य ) ३.१०.९. । विच्छिण्ण-विस्तीर्ण १४.२५.२,१६.२.६. 'वास-वर्षा १०-५.४.१२.१५.१५ विच्छिय-वृश्चिक २.१३.१० वासुपुज-वासुपूज्य (= बारहवाँ तीर्थकर ) १७.१०.६. विजय-त स १.११.१०६६.४.२. Vवाह-वाहय विजय-(= एक रानी) ५.४.१०. वर्त० तृ० ए० वाहइ ६.११.६. विजय-त स (= विदेह क्षेत्रके भागोंका नाम ) ५.८.४; वर्त. कृ. वाहंत २.१.६. १६.१२.२,१८.७.५ पू० कृ. वाहिवि ११.६.५. विजय-त स (=पहला बलदेव ) १७.२०.१. -वाहेवि ११.१०.५. विजयपाल–त स (= एक योद्धा ) ११.८.१३. /विजाण-वि+ज्ञा (=जानना) वाहण-वाहन १.१३.७७८.१४.३.११.२.७. वर्त० तृ. ए. विजाणइ २.९.६ वाहय-वि+ आ + हत (= नष्ट) ६.१३.९. आ.द्वि. ए. विजाणहि ६.१६.५. वाहि-व्याधि ३.२.४,३.६.५,३.८.८ -बियाणहि ६.१६.५. वाहिणि-वाहिनी (१ = नदी) २.१३.४. भू. कृ. विजाणिय १.११.४. (२=सेना ) १२.५.६. /विज-विद् (= होना) वाहिर-बाह्यतः १६.२.१०. वर्त.तृ. ए.विजइ १.८.२. वि-(= अपि) १.१.१ (बहुशः) /विज-विजय (=पंखा करना) - वर्त० तृ. ए. विजइ १.२३.४. (पादपूर्णाय ) १.१२.९. विज-वैद्य १४.२४.६. विउद्ध-विबुद्ध (= जागे हुए) १०.१२.८ विज-विद्या ३.१२.४११.८.७. विउल-विपुल (= एक ज्ञान) ६.१६.२. विज-विज्ञ ६.६.८. विउल-विपुल (= प्रचुर) १०.१.६. विजय-द्वितीय १.१०.७,३.१०.७४.८.२,७.४.१. विउठवण-विकुर्वणा ( = एक ऋद्धि ) ७.७.४. विज्जवेय–विद्युद्वेग ( पार्श्वनाथके चौथे भवके पिताका नाम) विउस-विद्वस १.१५.१०२.७.४,५.४.४ ४.४.९,४.५.१,४.६.१. १०.११.१०,१६.१६.११. विज्जावंत-(= विद्यायुक्त) १७.२०.४. विएस-विदेश १.११.११. विजाहर-विद्याधर ४.४.५,४.६.१. विओय-वियोग ९.८.११,१०.१२.४,१३.१५.३ विजावाय-वीर्यानुवाद ( दसवाँ पूर्वांग ) ७.३.५. विजण-(= खाद्यमें रसव्यञ्जक वस्तु) ८.५.६. विजु-विद्युत ६.१२.३. विज्झ-विन्ध्य (= पर्वत ) ११.५.११,११.१०.९ -बिज १४.२०.२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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